September 12, 2024

नेपाल में ओली सरकार, भारत के लिए क्या हैं चैलेंज

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नेपाल-भारत रिश्ते
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नेपाल में एक बार फिर से खड्ग प्रसाद शर्मा ओली यानि के.पी. शर्मा ओली प्रधानमंत्री बन गए हैं। इसके पहले वो 2015 से 16 और 2018 से 2021 तक पीएम रहे। इनकी पार्टी का नाम है Communist Party of Nepal (Unified Marxist–Leninist).  जिनकी सरकार इन्होंने गिराई उनका नाम है पुष्प कमल दहल प्रचण्ड, ये भी तीन बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। इनकी पार्टी का नाम है Communist Party of Nepal (Maoist Centre).

यानि कि दोनों है कम्युनिस्ट विचारधारा के नेता। दोनों ही चीन परस्त राजनीति करते हैं। प्रचण्ड और ओली दोनों को ही चीन से कुछ ज्यादा ही लगाव है। प्रचण्ड की सरकार ने चीन और ओली को खुश करने के लिए अभी हाल ही में 100 रूपये के नोट में नेपाल का वो विवादित मैप छापा जिस पर भारत सरकार को ऐतराज है। इस मैप में भारत के कुछ हिस्सों को नेपाल में शामिल किया गया है। ये इलाके हैं-कालापानी, लिंपियाधुरा, लिपुलेख।

ऐसा करने के बावजूद प्रचण्ड अपनी सरकार बचा नहीं पाए। केपी ओली ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार बहुमत परीक्षण में हार गई।

इसके बाद खड्ग प्रसाद शर्मा ओली ने शेरबहादुर देउबा से गठबंधन करके सत्ता में वापसी की है। शेरबहादुर देउबा नेपाल की कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं। शेरबहादुर देउबा 1995 से 2022 के बीच 5 बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इन दोनों के बीच 18-18 महीने पीएम बनने का समझौता हुआ है। इसी समझौते के तहत पहले ओली प्रधानमंत्री बने हैं और 18 महीने बाद देउबा पीएम बनेंगे। हालांकि इस सरकार को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दे दी गई है। याचिका में कहा गया है कि ओली को जिस प्रकार प्रधानमंत्री बनाया गया वो प्रक्रिया असंवैधानिक है।

 

 

हालांकि ये तो नेपाल का आंतरिक मामला है। लेकिन भारत के लिए जो चिंता की बात है वो है विवादित मैप का मामला। राजनयिक स्तर पर भारत इसका विरोध करता रहा है। बावजूद इसके नेपाल की सरकारें इस मुद्दे पर टस से मस नहीं हो रही हैं। अब तो उन्होंने 100 के नोट पर इस मैप को छाप दिया है। नेपाल में सरकार की अगुवाई भी ऐसा नेता कर रहा है जो घोषित तौर पर चीन को प्राथमिकता देता है। चीन के साथ गहरी दोस्ती का ऐलान कर चुका है। चीन के कहने पर नेपाल की पॉलिसी को बनाता और बिगाड़ता है। चीन के कहने पर भारत के साथ रिश्ते खराब करता है। नेपाल में उसकी राजनीति का आधार ही भारत विरोध और चीनी प्रेम है। विपक्ष में भी चीन प्रेमी नेता प्रचण्ड है जिसकी सरकार को गिराकर ओली प्रधानमंत्री बने हैं।

भारत के साथ केपी शर्मा ओली के संबंध 2015 में उस वक्त ज्यादा खराब हो गए जब नेपाल में नया संविधान लागू हुआ। नए संविधान को लेकर भारत-नेपाल सीमा से लगते दक्षिण तराई के इलाके के मधेशी और जनजातीय लोगों को नाराजगी थी इसलिए उन्होंने भारत से लगने वाले सभी रास्तों की आर्थिक नाकेबंदी कर दी। भारत सरकार ने आंदोलनकारियों का अघोषित साथ दिया। आर्थिक नाकेबंदी से नेपाल को भारत से जाने वाले तमाम सामान और पेट्रोलियम की आपूर्ति रूक गई। नेपाल के लोगों को कई महीनों तक बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा।

नेपाल सरकार आंदोलनकारियों के सामने झुकने के बजाय चीन से एक नया समझौता कर लिया और सामान की सप्लाई चीन से शुरु हो गई। कुछ महीनों बाद जब आंदोलन खत्म हो गया तो भारत से पहले जैसी सप्लाई शुरू हो गई और रिश्ते सामान्य हो गए। लेकिन इसका खामियाजा भारत को उठाना पड़ा। नेपाल पूरी तरह से चीन की गोद में बैठ चुका था। तमाम नीतियों और फैसलों पर चीन का प्रभाव साफ दिखता है।

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ऐसा नहीं है कि केपी ओली हमेशा से भारत के खिलाफ रहे हों। जब नेपाल में राजशाही थी तब ओली भारत के पक्षधर थे और अच्छे रिश्ते रखते थे। 1990 के दशक में ओली नेपाल सरकार में मंत्री हुआ करते थे। वो विदेश मंत्री भी रहे। ऐतिहासिक महाकाली संधि जो 1996 में भारत और नेपाल के बीच हुई उसमें केपी शर्मा ओली की बड़ी भूमिका थी।

भारत के सामने सबसे बड़ा कूटनीतिक चैलेंज नेपाल के नए मैप के मामले को सुलझाना है। भारत-नेपाल के अच्छे संबंधों का असर भारत की सुरक्षा को मजबूत करता है। क्योंकि नेपाल के साथ भारत 1751 किमी की सीमा लगती है। नेपाल की नई सरकार बनने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को अच्छे संबंधों की उम्मीद के साथ शुभकामनाएं दी हैं। जवाब में ओली ने भी परस्पर संबंधों के प्रगाढ़ होने की उम्मीद जताई है।

महेन्द्र सिंह, संपादक, दि इंटरव्यू टाइम्स

 


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