बैसाखी पर्व की मान्यता और महत्व

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बैसाखी पर्व का महत्व

बैसाखी पर्व वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है, जो चैत्र माह के अंत या वैशाख माह की शुरुआत के दिन होता है। यह त्योहार हर साल 13 अप्रैल या 14 अप्रैल को मनाया जाता है।

वैसाखी पर्व के दिन सिखों के लिए नये साल का आगमन होता है। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में जाकर अपने आराध्य भगवान गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन करते हैं। यह दिन उनके लिए एक अत्यंत पवित्र दिन होता है जिसे वे बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।

बैसाखी पर्व की तैयारी

बैसाखी पर्व की तैयारी अपनी तरह से बहुत धूमधाम से की जाती है। बैसाखी पर्व सिखों के लिए वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन सिख समुदाय अपने धर्म के महत्वपूर्ण घटनाओं को याद करते हैं और अपने संगीत, नृत्य, भोजन, और धार्मिक आयोजनों के लिए एक साथ आते हैं।

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बैसाखी पंजाब में हिंदू लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। इस दिन पर हिंदू लोग सभी धर्मों की परंपराओं का सम्मान करते हुए नए साल के आगज का स्वागत करते हैं।

बैसाखी के दिन सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं और अपने घरों को सजाते हैं। इस दिन लोग अपने मित्रों और परिवार के साथ मिठाई, नमकीन और स्वादिष्ट भोजन साझा करते हैं। वे धर्मिक कार्यक्रम भी करते हैं जैसे कि गुरुद्वारे में प्रार्थना करते हैं और नगर के चौक में बैसाखी परेड निकालते हैं।

बैसाखी पर्व और उसका महत्व

बैसाखी पर्व का महत्व

यह त्योहार सिख समुदाय में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उनके धर्म एवं संस्कृति का प्रतीक है। इस दिन कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं। सबसे पहले, इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख समुदाय के लिए खालसा पंथ की स्थापना की। खालसा पंथ का मतलब होता है “पावन समुदाय” और यह एक संगठित समुदाय है जिसका मकसद धर्म के लिए सेवा करना है। इसी दिन सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह द्वारा, सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को गुरू मानने की घोषणा भी हुई थी।

 

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बैसाखी पर्व क्यों मनाया जाता है

बैसाखी पर्व का त्योहार सभी धर्मों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दिन अलग-अलग धर्मों के लोग एक दूसरे के साथ अपनी खुशियों को साझा करते हैं और अपने साथ धर्म के मूल्यों को भी लेकर चलते हैं।

बैसाखी पर्व का मुख्य उद्देश्य नए साल का स्वागत करना होता है। इसे हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है, जब सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है। इस दिन सूरज की रोशनी के साथ-साथ आने वाले नए साल की शुरुआत की जाती है और इसे खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस उत्सव के दौरान सिख समुदाय के लोग अपने परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ मिलकर गुरुद्वारे में जाते हैं। वहाँ वे धार्मिक कीर्तन, कथा और आरती के साथ-साथ भोजन भी करते हैं।

बैसाखी पर्व को हिंदू धर्म में वैषाखी नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में वैषाखी का महत्व बहुत है। इस दिन सूर्य का उत्सव मनाया जाता है जो उत्तरी भारत में ग्रीष्म ऋतु के आरंभ को दर्शाता है।

इस त्योहार का अपना महत्व है, जो भारत की विविधता को दर्शाता है। यह त्योहार भारत में नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत उत्साह से मनाया जाता है।

बैसाखी पर्व के दिन लोग उत्साह से नाचते-गाते हुए मनाते हैं। भारत के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में, लोग इस त्योहार को खेतों में कटाई के अवसर पर मनाते हैं।

बैसाखी पर्व पर गिद्दा और भांगड़ा भी किया जाता है। गिद्दा पंजाब का लोक नृत्य है, जो बैसाखी के दिन खास रूप से प्रदर्शित किया जाता है। इसमें लोग बहुत ही उत्साह से नृत्य करते हैं। भांगड़ा भी एक पंजाबी नृत्य है जो बैसाखी के अवसर पर खेला जाता है। इसमें लोग धोल, नागाड़ा, तुरी और छिमटे आदि संगीत वाद्य उपयोग करते हैं। लोग इसमें उत्साह और खुशी से भरे हुए होते हैं और अपने अंगों को आजमाते हुए नृत्य करते हैं। यह नृत्य लोगों के बीच एक सामूहिक अनुभव और समाज के एकता का प्रतीक होता है।

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