ओपिनियन और एक्ज़िट पोल के बीच ‘गोदी मीडिया’ का खेल बेनक़ाब

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दैनिक भास्कर के चुनावी सर्वे को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश सभी में एक बात कॉमन है। बिहार में नीतीश – मोदी गठबंधन का जाना तय है। भास्कर के सर्वे में नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनता बताया गया है। लेकिन बाकी सारे चैनल ने महागठबंधन की जीत दिखलाई है। यहां तक कि आईपीसी की धारा 306 और 161 झेल रहे जेल में बंद अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी जैसे हार्डकोर बीजेपी समर्थित चैनल ने भी महागठबंधन को 138 सीट्स दी हैं। आरएसएस बीजेपी सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले यशवंत देशमुख ने एबीपी न्यूज़ के लिए किए सर्वे में महागठबंधन के खाते में 131 सीट्स तक दी हैं।

छात्र जीवन से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे बीजेपी समर्थक पत्रकार रजत शर्मा के इंडिया टीवी ने तेजस्वी की बड़ी जीत दिखलाई है। इंडिया टीवी के सर्वे में नीतीश गठबंधन को 80 और तेजस्वी गठबंधन को 150 सीट्स मिलते हुए बताया है। सबसे अधिक टूडेज चाणक्य के सर्वे में महागठबंधन को 180 से अधिक सीट मिलती बताई गईं हैं। बीजेपी जेडीयू गठबंधन को चाणक्य ने सबसे कम 55 से 66 सीट्स पर सिमटता दिखाया है। टाइम्स ग्रुप के चैनल टाइम्स नाउ ने भी महागठबंधन को 120 सीट्स देकर एनडीए पर बढ़त दिखलाई है।

सभी एग्जिट पोल के विश्लेषण के आधार पर एक और बीजेपी समर्थक चैनल.. ZEE NEWS ने महाएग्जिट पोल तैयार किया है, जिसमें नीतीश सरकार को तगड़ा झटका लगते नजर आ रहा है। ZEE NEWS के महाएग्जिट पोल में महागठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। ZEE महाएग्जिट पोल के मुताबिक बिहार में महागठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलता नजर आ रहा है. इसमें महागठबंधन को 137 सीटें, एनडीए को 98 सीटें, एलजेपी को 3 और अन्य के खाते में 5 सीटें जाती नजर आ रही हैं।

कमाल की बात ये है कि इन्हीं चैनलों ने चुनाव से महज दो हफ्ते पहले जनता को भ्रमित करने के लिए बीजेपी जेडीयू के जीत का भोकाल फैलाया था। यहां तक कि लोकनीति-सीएसडीएस ने भी बिहार चुनावों से पहले अपने ओपिनियन पोल में एनडीए को 133-143 सीट और महागठबंधन को महज 88-98 सीट ही दिए थे। तब भी मेरा मानना था कि सारे ओपिनियन पोल बीजेपी प्रायोजित हैं। ऐसे पोल में पत्रकारिता नहीं, धन बोला करता है। फर्जी ओपिनियन पोल के जरिए बीजेपी जेडीयू के लिए जो माहौल बनाने की कोशिश कुछ मीडिया हाउस ने कि उसका जनता पर कोई असर नहीं हुआ। बल्कि बिहार की जानता ने बता दिया कि न्यूज चैनल के ओपिनियन पोल पॉलिटिकल पार्टियों के प्रायोजित कार्यक्रम भर होते हैं। उनका जन सरोकार से कोई लेना देना नहीं होता है। लेकिन ये सवाल तो उठता ही है कि क्या एबीपी न्यूज़, आज तक और सीएसडीएस जैसे संस्थानों को यह नहीं बताना चाहिए कि बिहार चुनाव से पहले फर्जी ओपिनियन पोल के लिए उन्हें कितने पैसे मिले थे? क्या वो बिहार और देश की जानता से माफी मांगेंगे?

मैं शुरू से मानता और कहता रहा हूं कि महागठबंधन की लैंडस्लाइड विक्ट्री होगी। 175 सीट्स आएंगी। मीडिया के कई साथी मेरी बात से असहमत रहे। लेकिन मेरे ऐसा मानने की वजह थी। जिस तरह 2014 में देश भर में मनमोहन सिंह को लेकर गुस्सा था.. वैसी ही नाराजगी नीतीश की “डबल ट्रबल इंजन” सरकार के खिलाफ भी दिख रही थी। तेजस्वी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है लेकिन जनता खींची चली आरही थी। रैलियों की भीड़ में युवा भरे होते थे। इसकी बड़ी वजह थी नीतीश की नाकामी, अहंकार और एयरोगंसी। बिहार के 58 फीसदी वोटर युवा हैं। जिनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है। 35/40 साल के लोग बिना जॉब के हैं।

Corona काल में नीतीश कुमार का रवैया हर किसी ने देखा। वो अकेले ऐसे अनोखे सीएम थे जिन्होंने कहा कि जो जहां है वो वहीं रहे, बिहार में किसी को नहीं घुसने दिया जाएगा। लोग पैदल हज़ार पंद्रह सौ किलोमीटर भूखे प्यासे जा रहे थे। जब केंद्र सरकार ने राज्यों से पूछा कि स्पेशल ट्रेन चाहिए? तब नीतीश ने बड़ी बेहयाई से माना कर दिया। बाढ़ के समय भी नीतीश ने बिहार को वेनिस बनते देखा। लोगों की कोई मदद नहीं की। नीतीश इसी अहंकार में रहे की नवीं पास तेजस्वी यादव उनका क्या बिगाड़ लेंगे! नीतीश की जानता से दूरी होती गई जबकि अवाम से जुड़े मुद्दे उठाते हुए तेजस्वी लोगों के दिलो दिमाग में जा बैठे।

बीजेपी के हिन्दू मुसलमान पाकिस्तान और झूठे वादों की गठरियों के ऊपर तेजस्वी के जमीनी वादे हावी रहे। सरकार से निराश व नाराज़ जनता ने अपना विकल्प चुन लिया। तेजस्वी के लिए चुनौतियां काफी बड़ी हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि.. दवाई, पढ़ाई, कमाई का नारा दे कर यहां तक पहुंचने वाले तेजस्वी फिलहाल फोकस्ड लग रहे हैं, उनको पता है कि क्या करना है और क्या नहीं। उन्हें पता है कि जनता की उम्मीदों को पूरा करने के लिए उन्हें जी तोड़ मेहनत करनी होगी। मोदी सरकार मुख्यमंत्री तेजस्वी को बार बार तंग करने की मुहिम में भी लगी होगी। लेकिन इन सबके बावजूद अगर तेजस्वी अच्छा काम नहीं करेंगे तो जिस जनता ने सर पर बिठाला है वहीं उठा के पटक भी देगी। बदलाव तो प्रकृति का नियम है। बिहार की जानता ने नवीं पास को तरजीह दी। जनता को एंटायर पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट भी नहीं लुभा पाए। बदलाव के लिए बिहार की जनता को हार्दिक बधाइयां एवं अनेकों शुभकामनाएं।

बिहार में बदलाव का असर पूरे देश में पड़ने वाला है। ऐसे में सवाल ये है कि हर चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे गृहमंत्री अमित शाह बिहार चुनाव से गायब क्यों रहे? शाह ने बिहार के बजाए बंगाल को क्यों चुना? क्या बीजेपी के चाणक्य और पार्टी को पता था कि कितनी भी कोशिशें की जाए बिहार में वनवास मिलेगा?

मतगणना से पहले महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की सुरक्षा बढ़ाई गई है। संकेत साफ हैं।

लेखक – शाहिद सईद, वरिष्ठ पत्रकार

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