October 1, 2024

बिहार वासियों से धोखा है पटना एम्स

0
Spread the love

प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी का IIT वाला ट्वीट चर्चा में है, जिसमें वो कह रहे हैं कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी साल 2014 से पहले तक देश में 16 IITs थे. लेकिन बीते 6 साल में औसतन हर साल एक नया IIT खोला गया है. इसमें एक कर्नाटक के धारवाड़ में भी खुला है. अब इसकी सच्चाई बहुत से लोग बता रहे हैं कि मोदी जी द्वारा खोले गए IIT की असलियत क्या है. यहां हम IIT की बात नहीं करेंग. यहां हम बात करेंगे एम्स की क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद जिन एम्स की घोषणा हुई उनमें से एक का भी काम पूरी तरह पूरा नहीं हुआ है. जहां बिल्डिंग चमचमा रही है वहां डॉक्टर और मेडिकल सुविधाओं के नाम पर निल बटा सन्नाटा है.

मई 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स यानी आखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान बनाने का ऐलान किया. इससे पहले मोदी राज के गुज़रे चार सालों में 14 एम्स बनाने की घोषणा हो चुकी थी. इसकी प्रगति के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जून 2018 में मोदी सरकार ने बताया कि 13 में से एक भी एम्स शुरू नहीं हो पाया है.

जैसे प्रधानमंत्री मोदी IIT के बारे में ट्वीट कर रहे हैं वैसे ही 2018 में उन्होंने एम्स के बारे में ट्वीट किया था कि “परिवार राज से स्वराज: 2014 तक 7 एम्स स्थापित किये गये, लेकिन मोदी सरकार के 48 महीने में 13 एम्स जैसे संस्थाओं को मंज़ूरी दी है.” दरअसल, एक ट्रेंड बन गया है दिल्ली से लेकर पटना तक. देश की बात हो तो परिवार राज और बिहार की बात हो तो जंगलराज का खौफ दिखाना बीजेपी की आदत बन गई है. ऐसा कर के बीजेपी अपनी नाकामियों को छिपाने की कोशिश करती है. हकीकत यह है 2014 के बाद की एक भी घोषणा 6 साल बाद हकीकत के धरातल पर नहीं उतर पायी है ढंग से. अगर आधिकारिक बयान का उल्लेख किया जाए तो 7 अगस्त, 2018 को राज्यसभा में सांसद अहमद पटेल के एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि इन एम्स में तो अभी तक काम ही चालू नहीं हुआ है जबकि अधिकतर एम्स को चालू करने का साल 2020-21 ही है.

अब बिहार चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी नया फंडा ले आए हैं कि हम IIT बना रहे हैं. फिर बोलेंगे हम IIM बना रहे हैं दरअसल ये कुछ भी नहीं बना रहे ये देश की जनता को सिर्फ मूर्ख बना रहे हैं.

फिलहाल देश में दिल्ली के अलावा छह अन्य स्थानों रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर में एम्स अस्पताल काम कर रहे हैं. इस वर्ष छह नए रीजनल एम्स अस्तित्व में आने के बाद देश में इनकी संख्या बढ़कर 12 हो जाएगी. प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने कुल 22 एम्स की स्थापना को स्वीकृति दी है. हालांकि जहां एआईआईएमएस बने हैं वो पूरी तरह काम नहीं कर रहे हैं क्योंकि बिल्डिंग अगर तैयार हो भी गई है तो वहां न प्रोपरली मशीन और मेडिकल सुविधाएं हैं और न ही डाक्टर और दूसरे हेल्थ स्टाफ. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने अगस्त 2018 में पटना एम्स के इमरजेंसी और ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन करते हुए बड़ी बड़ी घोषणाएं की थीं. जबकि हकीकत ये है कि पटना एम्स की हालात दयनीय है. न ढंग के चिकित्सक हैं और न स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं.

 पटना के इमरजेंसी और ट्रॉमा सेंटर में तो ये हालात है की मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं कि बात तो छोड़िए बेड भी सही से नहीं है. पटना के एम्स का ये हाल है कि बड़े बड़े नेताओं और मंत्रियों से पैरवी लगाने के बाद जब मरीज़ बिहार के विभिन्न स्थानों से पटना एम्स में भर्ती होते हैं तो उन्हें आधा अधूरा इलाज नसीब होता है या वो भी नसीब नहीं होता है. इमरजेंसी में भर्ती हुए मरीजों को भी सर के सीटी स्कैन के लिए 6 से 8 घंटे भटकना पड़ता है, माथापच्ची करनी होती है. क्रिटिकल मरीजों को भी 28 से 30 घंटे तक मामूली नर्सिंग स्टाफ के भरोसे छोड़ दिया जाता है क्योंकि विशेषज्ञ चिकित्सक हैं ही नहीं. ट्रॉमा सेंटर में सिर्फ एक मशीन काम कर रही है जबकि बाकी मशीन ऑपरेशनल नहीं हैं. ओपीडी की हालत भी दयनीय है. बल्कि ये कहा जाना चाहिए कि पटना का एम्स कलंक है एम्स के नाम पर. कुल मिला कार पटना कि विशाल और भव्य बिल्डिंग को देख कर किसी का भी पहला इंप्रेशन ये जाता है कि अस्पताल लाजवाब होगा परंतु वास्तविकता यह है कि पटना के एम्स को अभी आमूल चूल परिवर्तन करना होगा अपना नाम बचाने के लिए.

लेखक – शाहिद सईद, वरिष्ठ पत्रकार


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *