‘होरी’ की कोरोना से भिड़ंत, मिला नोबेल प्राइज़

0

{"subsource":"done_button","uid":"2CAF6B1D-5FB5-4CE5-8ED3-8FA4C2B701BD_1591015942791","source":"editor","origin":"gallery","sources":["323769137150211"],"source_sid":"2CAF6B1D-5FB5-4CE5-8ED3-8FA4C2B701BD_1591015942808"}

 करोना से दुनिया परेशान थी
अंदर तक लहूलुहान थी ।
उसको देवी,देवता,खुदा, गॉड ,सब कर चुके निराश।
बस इंसानों से ही थी कुछ आश ।

मैं भी देख रहा था दुनिया में इंसान को तिल तिल मरता ।
आखिर होरी भी कब तक,  क्या न करता ?
उधर दुनिया की शानो शौकत रो रही थी।
इधर मेरे अंदर पीर पर्वत हो रही थी ।
मैं क्रोधाग्नि में जलते घर से बाहर निकल पड़ा।
कि पास ही राक्षस करोना मिल गया, खड़ा ।।
मुझे आया जोर का तैश।
मैं खुद था अस्त्र शस्त्र कवच से लैस।

मेरी हुई जोर की भिड़ंत ।
मगर आज था करोना का अंत ।।
वह कुछ न कर पाया ,
मैंने उसे जमीन पर गिराया।
उसका रक्षा कवच तार तार किया।
और मैंने करोना को मार दिया।

तभी आसमान से फूलों की वर्षा होने लगी।
देवताओं की दुंदुभी बजने लगी।
मैंने भगवान से उलहना दिया
आपने तो कुछ न किया
अब दुनिया को चिढ़ा रहे हो।
व्यर्थ दुंदुभी बजा रहे हो ।

और तुम्हारा क्या किसी कवि से कहोगे कि लिखो
होरी के रूप में तुमने कलियुग में अवतार लिया
और राक्षस करोना को मार ,धरती का उद्धार किया ।
मगर जरा ठहरो इंसान ने भी सब समझ लिया है।
अहम् ब्रह्मास्मि का अब मूल मंत्र लिया है ।।
अत्त दीपो भव को गया है जान।
अब न भटकेगा सचान ।।

तभी दुनिया ने एक अनोखा कार्य किया।
होरी को ट्वेंटी ट्वेंटी का नोबल प्राइज दिया।
करोना हत्यारे को शांति का नोबल प्राइज।
था न सरप्राइज ।

काश यह स्वप्न नहीं ,सत्य हो जाय।
मुझे करोना नोबल प्राइज मिल जाय।।
अंधेरा मिटे जगत में ,सूरज खिल जाए
"होरी" फिर से वह दुनिया मिल जाय।।
राजकुमार सचान”होरी”
कवि,लेखक
horirajkumar@gmail.com

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *