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कोरोना से अर्थव्यवस्था लॉकडाउन

कोरोना से अर्थव्यवस्था लॉकडाउन

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जैसा कि हम सब जानते हैं कोरोना ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है। दुनिया के करीब 200 देश इसकी चपेट में आ चुके हैं। लाखों लोग कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं। हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। इसका संक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

यह वायरस लोगों को बीमारी से कहीं अधिक आर्थिक रूप से मार रहा है। दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यस्थाएं कोविड-19 के सामने नतमस्तक हैं। भारत की अर्थव्यवस्था तो पहले से ही संकट में है। इसकी सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ रही है।

विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि पूर्वी एशिया के तमाम देशों की अर्थव्यस्थाएं तबाह हो जाएंगी। एशिया में लाखों लोग गरीबी के कुचक्र में फंस जाएंगे।

विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि पूर्वी एशिया प्रशांत क्षेत्र में इस वर्ष विकास दर 2.1 फीसदी रह सकती है जो 2019 में 5.8 फीसदी थी। विश्व बैंक का अनुमान है कि एक करोड़ 10 लाख से अधिक लोग गरीबी के दायरे में आ जाएंगे। जबकि पहले अनुमान था कि इस वर्ष विकास दर ठीक रहेगी और 3.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ जाएंगे।

भारत सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिए जिन आर्थिक उपायों की घोषणा की है, उनमें तकरीबन सभी वर्गों को शामिल किया गया है।

एक अनुमान के मुताबिक महज 21 दिन के लॉकडाउन में भारत के कुल उत्पादन में 37 फीसदी की कमी आ जाएगी। जो कि देश की कुल जीडीपी में 4 फीसदी की कमी कर सकता है। इस बात का महज अनुमान ही लगाया जा सकता है कि यदि ये लॉकडाउन लम्बा चला तो फिर ये कितना गंभीर संकट होगा। इसके साथ ही वैश्विक विकास दर में गिरावट भी भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी।

सरकार की घोषणाएं

लोगों की मदद के लिए सरकार ने तमाम घोषणाएं की हैं। सरकार करीब 80 करोड़ लोगों को तीन महीने के लिए मुफ्त अन्न देगी। पीएम किसान योजना में शामिल करीब 7 करोड़ किसानों को वित्त वर्ष 2020-21 की 2000 रूपये की पहली किश्त अप्रैल में दे दी जाएगी। प्रधानमंत्री जन धन योजना की महिला खाताधारकों को आगामी तीन महीनों के दौरान प्रति माह 500 रुपए दिए जाएंगे। आगामी 3 महीनों में 8 करोड़ गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर मुफ्त में दिये जाएंगे। सरकार अगले 3 महीनों के दौरान लगभग 3 करोड़ वृद्धजनों, विधवाओं और दिव्यांग लोगों को 1000 रुपए देगी।

मनरेगा मज़दूरी में 20 रू प्रतिदिन की बढ़ोतरी की गई है। इससे करीब 62 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे। महिला स्वयं सहायता समूहों के लिये कोलेटरल फ्री लोन देने की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपए की जाएगी।

इसके अलावा सरकार ने कर्मचारियों को अपने ईपीएफ खातों से कुल जमा राशि के 75 फीसदी या तीन महीने का वेतन, जो भी कम हो, तक एडवांस लेने की अनुमति दी है। इसके तहत चार करोड़ कर्मचारियों को लाभ मिलेगा।

राज्य सरकारों से भी कहा गया है कि वो भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिकों की सहायता के लिए ‘भवन एवं अन्य निर्माण कोष’ का उपयोग करें। इसके तहत करीब 3.5 करोड़ मजदूरों को लाभ मिलेगा।

देश के सामने गंभीर संकट

सरकार की इन घोषणाओं की सभी ने तारीफ की है। लेकिन चिंता यहीं खत्म नहीं हो जाती। सरकार ने जो 1.70 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की है,  वो देश की कुल जीडीपी के एक फीसदी से भी कम है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को संभालना नामुमकिन है।

देश में करोड़ों ऐसे कर्मचारी और मजदूर हैं जो न तो ईपीएफ में पंजीकृत हैं और न ही ‘भवन एवं अन्य निर्माण कोष’ के तहत। जाहिर है इन लोगों को सरकार द्वारा घोषित आर्थिक मदद का लाभ नहीं मिल पाएगा।

मध्यम वर्ग के लिए भी सरकार ने कोई विशेष घोषणा नहीं की है। एमएसएमई जो कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, के लिए भी कोई राहत नहीं दी गई है। ऐसे में आने वाले दिनों में देश गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है।

क्या करना चाहिए

कर्मचारी भविष्य निधि से पैसे एडवांस लेने का अभी उन्ही श्रमिकों को लाभ मिलेगा, जिनकी आय 15000 से कम है। तमाम आर्थिक विश्लेषकों को मुताबिक इसे 25000 तक बढ़ा दिया जाना चाहिए। सरकार के खर्चे पर तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन इससे बड़ी संख्या में कर्चारियों को कवर किया जा सकेगा।

इसी प्रकार महिला जन धन खाताधारकों को प्रदान की जा रही राशि भी बढाई जानी चाहिए। फिलहाल महिला जन धन खाताधारकों के खाते में सरकार आगामी तीन महीनों के लिए प्रतिमाह 500 रुपए डालेगी।

लॉकडाउन के कारण छोटे-बड़े सभी निगम प्रभावित हुए हैं। सरकार को इन निगमों के लिये भी विशेष पैकेज की घोषणा करनी चाहिए ताकि ये अर्थव्यवस्था को आने वाली आर्थिक मंदी से उबारने में योगदान दे सकें। सरकार को माध्यम वर्ग की मदद भी करनी चाहिए। एमएसएमई के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा भी का जानी चाहिए।

ऐसा लगता है कि सरकार अपने निर्धारित बजट के अंदर ही सभी उपाय करना चाहती है। जबकि वैश्विक महामारी की समयसीमा निर्धारित नहीं है। जाहिर है सरकार को कभी न कभी अपने राजकोषीय घाटे की सीमा को तोड़ना ही होगा।

लेखक- महेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

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