October 1, 2024

लॉकडाउन से पूरी तरह बदल जाएगा एजुकेशन सेक्टर- प्रो.निपुणिका शाहिद

0

{"source":"editor","effects_tried":0,"photos_added":0,"origin":"gallery","total_effects_actions":0,"remix_data":[],"tools_used":{"tilt_shift":0,"resize":0,"adjust":0,"curves":0,"motion":0,"perspective":0,"clone":0,"crop":1,"enhance":0,"selection":0,"free_crop":0,"flip_rotate":0,"shape_crop":0,"stretch":0},"total_draw_actions":0,"total_editor_actions":{"border":0,"frame":0,"mask":0,"lensflare":0,"clipart":0,"text":0,"square_fit":0,"shape_mask":0,"callout":0},"source_sid":"2CAF6B1D-5FB5-4CE5-8ED3-8FA4C2B701BD_1587119731956","total_editor_time":1052,"total_draw_time":0,"effects_applied":0,"uid":"2CAF6B1D-5FB5-4CE5-8ED3-8FA4C2B701BD_1587119731948","total_effects_time":0,"brushes_used":0,"height":807,"layers_used":0,"width":1536,"subsource":"done_button"}

Spread the love

कोरोना वायरस के संक्रमण पर काबू पाने के लिए देश में लॉकडाउन 3 मई 2020 तक बढ़ा दिया गया है। लॉकडाउन की वजह से शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से ठप हो गई है। लाखों छात्रों की बोर्ड परीक्षाएं बीच में अटक गई हैं। मेडिकल, इंजीनियरिंग, एसएससी, बैंक, रेलवे इत्यादि सैकड़ों प्रतियोगी परीक्षाएं भी टल गई हैं। ऐसे हालात में छात्रों में बेचैनी है। उन्हें करिअर की चिंता सता रही है। पैरेंट्स और शिक्षण कार्य में लगे लोग भी परेशान हैं। एजुकेशन सेक्टर पर लॉकडाउन के प्रभाव, चुनौतियों और बदलाव जैसे तमाम मुद्दों पर हमने बात की वरिष्ठ पत्रकार और एमिटी स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन, एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा की असिस्टेंट प्रोफेसर निपुणिका शाहिद से

Prof. Nipunika Shahid

प्रश्न – लॉकडाउन की वजह से देश में शैक्षणिक संस्थान बंद हैं। इसका एजुकेशन सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

प्रो.निपुणिका शाहिद – लॉकडाउन का एजुकेशन सेक्टर पर काफी असर पड़ने वाला है। अब वही एजुकेशन सेक्टर सर्वाइव करेंगे जो वक़्त के साथ अपने को टेक्नॉलाजी के साथ ढाल पाएंगे। यानी जहां भी कॉरपोरेट कल्चर पहले से होगा उनके लिए तो टेक्नॉलाजी और नए पैरामीटर के हिसाब से अपने को एडजस्ट करना आसान होगा। इसके साथ साथ अब वैसे टीचर भी सर्वाइव नहीं कर पाएंगे जो टेक्नॉलाजी के साथ खुद को अवेयर नहीं करेंगे। ऑनलाइन एजुकेशन का सबसे बड़ा फर्क ये होगा कि अब क्वालिटी एजुकेशन ज़रूरी हो जाएगी। टीचर्स पर अब बहुत ज़्यादा जवाबदेही और ज़िम्मेदारी आने वाली है। क्योंकि ऑनलाइन जब उनका लेक्चर होगा तो मैनेजमेंट के साथ साथ बच्चों के माता पिता अभिभावक या कोई और समझदार या जानकार व्यक्ति टीचर्स के लेक्चर का पोस्टमार्टम भी कर सकता है। यानी अब वैसे शिक्षकों के दिन लद जाएंगे जो क्लास में टाइम पास कर के कुछ भी पढ़ा दिया करते थे। 

प्रश्न – शैक्षणिक संस्थान बंद होने से छात्रों और पैरेंट्स में टेंशन स्वाभाविक है। ऐसे हालात में छात्रों के लिए आपकी क्या सलाह है?

प्रो.निपुणिका शाहिद – मेरा मानना है कि वैसे बच्चों और अभिभावकों के लिए ये वक्त परेशानी का सबब है जिनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं है। कहने का तात्पर्य ये है कि घर में बच्चे तो तीन हैं लेकिन लैपटॉप एक। और तीनों बच्चों की क्लास एक ही समय होनी है। ऐसे में ये बड़े दुविधा वाली बात होगी की क्या करें। ऐसे में किसी बच्चे को स्मार्ट फोन पर चीजें अपलोड करनी होंगी (सहारा लेना होगा)। लेकिन लैपटॉप पर बड़े स्क्रीन की वजह से जो आसानी होगी वो फोन पर नहीं हो पाएगी। साथ ही लैपटॉप / डेस्कटॉप की आसानी ये भी है कि आप अलग अलग विंडो एक साथ खोल कर पढ़ाई कर सकते हैं। जैसे एक विंडो में स्क्रीन का साइज़ छोटा कर के संबंधित किताब खोली जा सकती है, दूसरे विंडो में ऑनलाइन जो लेक्चर आ रहा है उसे देखा और सुना जा सकता है और तीसरे विंडो में इम्पोर्टेंट बातें नोट की जा सकती हैं। लेकिन फोन पर ये सब कर पाना आसान नहीं होगा।

लेकिन इसका भी समाधान है। बच्चे को हमेशा एक क़दम आगे रहना होगा। यानी जो विषय पढ़ाया जाने वाला है वो विषय वो पहले खुद पढ़ लें। उसमें से जो नहीं समझ आए वो प्वाइंट्स अलग से बना लें। और जब लेक्चर ऑनलाइन हो, और फिर भी कुछ समझ नहीं आए या कोई सवाल हो तो तुरंत पूछें। ताकि समस्या का समाधान हो सके। याद रहे की आपको ऑनलाइन ही सब कुछ समझना है। रियल क्लास और वर्चुअल क्लास का यही फर्क है। रियल क्लास में आप टीचर के पास क्लास के बाद में जाकर भी कुछ पूछ सकते हैं। वर्चुअल क्लास में आपको काफी एलर्ट और शार्प होना होगा। जो बच्चे ज़रा भी चूकेंगे उन्हें भारी परेशानी होगी समझने में।

वर्चुअल क्लास का एक और बहुत बड़ा फायदा ये है कि स्कूल आने जाने में जो समय बर्बाद होता है वो इसमें नहीं होता है। उदाहरण के लिए कोई बच्चा एडवांस कोचिंग किसी चीज़ पर दिल्ली में कहीं करता है और उसको ग्रेटर नोएडा से क्लास करने आना होता है। ऐसी स्थिति में आने जाने में उसके कम से कम तीन से चार घंटे रोज़ बर्बाद होते हैं और ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा अलग से होता है। महीने और साल का हिसाब लगाया जाए तो आप पाएंगे की ट्रैवल में ही इतना समय लग गया जितने में आप कोई भी प्रोडक्टिव काम आसानी से कर सकते थे और जो पैसे खर्च हुए वो अगर जोड़ें तो काफी कुछ बचा सकते थे।

इसके अलावा जो और महत्वपूर्ण बात है कि आप की एनर्जी बुरी तरह वेस्ट हुई। घर पर रह कर बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं तो वो पूरी तरह तरोताजा होते हैं। साथ ही क्लास / लेक्चर भी मिस होने के चांस नहीं होते हैं। अगर किसी बच्चे की तबीयत खराब हो तब भी वो बिस्तर पर ऑनलाइन लेक्चर अटेंड कर सकता है। इसलिए मेरी सलाह ये है कि छात्र और अभिभावक बिल्कुल चिंतित ना हों। ज़रा सी सावधानी और खुद को एक क़दम आगे रखें। पूरी तरह एलर्ट रहें। ऑनलाइन पढ़ाई में आप कुछ ही समय में पाएंगे की आप के लिए ये एक वरदान की तरह है। 

प्रश्न – डिजिटल टेक्नॉलॉजी के जमाने में क्या भारत के एजुकेशन सिस्टम में बदलाव होना चाहिए? यदि हाँ तो किस तरह के बदलाव कीज़रूरत है?

प्रो.निपुणिका शाहिद – बदलाव तो प्रकृति का नियम है। एक समय था जब कैमरे के लिए कोडक रील के बिना तस्वीर लेना सोचा भी नहीं जा सकता था। हालांकि कोडक के अलावा भी रील उपलब्ध होती थी। लेकिन किसी की भी पहली पसंद कोडक रील होती थी। प्रोफेशनल फोटोग्राफर की जान होती थी कोडक रील। समय बीता, टेक्नोलॉजी बदली लेकिन कोडक ने समय के साथ खुद को नहीं बदला। इसका परिणाम ये हुआ कि कोडक की मौत हो गई। आज की जेनरेशन के बच्चे कोडक का नाम भी नहीं जानते हैं। अगर कोडक ने समय रहते खुद को डिजिटल कर लिया होता तो आज कोडक ज़िंदा होता। ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे।

इसी तरह मेरा मानना है कि एजुकेशन सिस्टम, पढ़ने और पढ़ाने के अंदाज़ में वक़्त के साथ बदलाव कि जरूरत है। जो टीचर या ऑर्गनाइजेशन इस बात को जितनी जल्दी समझेगा वो बाज़ी मार ले जाएगा, जो नहीं समझेगा वो गर्त में चला जाएगा।

टीचर को अब काफी सतर्क और समय के साथ खुद को एडजस्ट करना होगा। उनका काम बढ़ने वाला है। थके हुए बोरिंग लेक्चर्स अब नहीं चलेंगे। अपने लेक्चर्स के स्टाइल और सिस्टम दोनों में उन्हें बदलाव लाना होगा। बचपन में कॉमिक्स आती थी चाचा चौधरी। उसमें लिखा होता था कि चाचा चौधरी का दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ है। वही बात यहां आती है। अब टीचर्स को चाचा चौधरी बनना होगा। यानी दो कदम आगे बढ़ के बल्लेबाजी करनी होगी। टीचिंग के नए नए आयाम के बारे में सोचना होगा। लेक्चर को रोचक बनना होगा। तरह तरह के उदाहरणों के साथ व्याख्या करनी होगी, बच्चों को तरह तरह के रोचक और चैलेंजिंग टास्क देना होगा। ताकि बच्चे भी खुद को इन्वॉल्व महसूस कर सकें। अन्यथा सारी एक्सरसाइज व्यर्थ जाएगी। 

Prof. Nipunika Shahid

प्रश्न – सरकार की प्राथमिकताओं में शिक्षा काफ़ी निचले पायदान पर रही है। इसे कितनी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है?

प्रो.निपुणिका शाहिद – देखिए जो आज के दौर में हालात हैं उसमें दो बहुत महत्वपूर्ण चीजें निकल कर आती हैं। और वो हैं हेल्थ और शिक्षा। कोरोना के कारण आज जो दुनिया भर में सबसे ज़रूरी चीज महसूस की जा रही है वो है हेल्थ सर्विस। इस हेल्थ सर्विस को स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए भी शिक्षा में सुधार की आवश्यकता है। शिक्षा में सुधार का मतलब यहां सिर्फ डॉक्टर्स की पढ़ाई से नहीं है। डॉक्टर्स को सपोर्ट सिस्टम देने के लिए भी बहुत तरह के एक्सपर्ट लोग चाहिए।

आज आप देखें तो केरल अकेला ऐसा राज्य है जिसका उदाहरण प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी ने भी दिया है कि कोरोना से लड़ने के लिए हमें केरल की तरह काम करना होगा। केरल के स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा का कहना है कि ये लड़ाई आसान नहीं है। सात राज्यों ने केरल से सलाह ली है कि कोरोना को  कैसे हराना है? शैलजा ने इसका कारण बताया कि पिछले तीस वर्षों से केरल ने अपने बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया है। जिसके कारण आज राज्यों के लोगों को भलीभांति पाता है सरकार ने जो पैमाने बताएं हैं उसके अनुसार अमल करना है। ये सब शिक्षा और लोगों के शिक्षित होने के कारण मुमकिन हुआ।

दूसरी बात स्वस्थ सेवाएं राज्य में इतनी बेहतरीन है कि परिस्थितियों पर काबू पाने में सफलता मिल रही है। यहां ये बात ध्यान देने वाली है कि केरल विदेशी टूरिस्टों का गढ़ है और देश में कोरोना से पहली मौत इसी राज्य में हुई थी। तभी वहां के मुख्यमंत्री ने सतर्कता और हर तरह की सावधानी बरतनी शुरू कर दी, जबकि केंद्र सरकार बाद में जागी और इसका परिणाम ये है कि स्थिति धीरे धीरे विकराल रूप ले रही है। छोटे से राज्य केरल में जो मेडिकल सुविधाएं हैं वो देश के बड़े बड़े राज्यों में नहीं हैं। इसलिए आज केरल का अनुसरण भारत ही नहीं कई दूसरे देश भी कर रहे हैं। ज़ाहिर है शिक्षा के बिना ये सब मुमकिन नहीं है। तात्पर्य ये है कि बेसिक एजुकेशन हो या हाइयर एजुकेशन… हर स्तर पर शिक्षा को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। 

प्रश्न- क्या सभी को सभी प्रकार की शिक्षा पूर्णतया मुफ़्त प्रदान की जानी चाहिए?

प्रो.निपुणिका शाहिद – यह सवाल ऐसा है जो किसी भी राष्ट्र के लिए धरोहर की तरह होगा। शिक्षा के बिना जीवन अंधकार है। इस अंधकार को हटाने के लिए मुफ्त या सस्ती शिक्षा पर भारी ज़ोर दिए जाने की जरूरत है। केंद्र से लेकर देश के हर राज्य को शिक्षा बजट बढ़ाना चाहिए। दिल्ली सरकार ने शिक्षा बजट बढ़ा कर जो काम किया उसी का परिणाम था कि दिल्ली के सरकारी स्कूल देखने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी ने दिल्ली का भ्रमण किया।

आज ज़्यादा से ज़्यादा स्कूल, कॉलेज और उच्च शिक्षा संस्थान खोलने की आवश्कता है। सरकार को ऐसे इलाकों में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जहां गरीबी सबसे ज्यादा है। निजी शिक्षण संस्थानों की अपनी एक अहम भूमिका है जिसे नकारा नहीं जा सकता है। बेहतर शिक्षा सबको मिल सके इसके लिए सरकार को चाहिए कि गैर सरकारी संस्थानों को अपने साथ जोड़े और उनका आर्थिक सहयोग करे। तभी सस्ती और बेहतर शिक्षा सभी को मिल सकती है।


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *