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कोरोना वायरस के संक्रमण पर काबू पाने के लिए देश में लॉकडाउन 3 मई 2020 तक बढ़ा दिया गया है। लॉकडाउन की वजह से शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से ठप हो गई है। लाखों छात्रों की बोर्ड परीक्षाएं बीच में अटक गई हैं। मेडिकल, इंजीनियरिंग, एसएससी, बैंक, रेलवे इत्यादि सैकड़ों प्रतियोगी परीक्षाएं भी टल गई हैं। ऐसे हालात में छात्रों में बेचैनी है। उन्हें करिअर की चिंता सता रही है। पैरेंट्स और शिक्षण कार्य में लगे लोग भी परेशान हैं। एजुकेशन सेक्टर पर लॉकडाउन के प्रभाव, चुनौतियों और बदलाव जैसे तमाम मुद्दों पर हमने बात की देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, कवि और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ मुकेश कुमार से।

प्रश्न – लॉकडाउन की वजह से देश में शैक्षणिक संस्थान बंद हैं। इसका एजुकेशन सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
प्रो. मुकेश कुमार – छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर ज़रूर बुरा प्रभाव पड़ेगा, लेकिन ये भी इस बात पर निर्भर करता है कि शिक्षा संस्थान इस संकट से निपटने के क्या तौर-तरीके अपनाते हैं। यदि वे डिजिटल माध्यम का सहारा लेकर उसकी भरपाई करते हैं तो शायद नुकसान कम होगा। रही बात एजुकेशन सेक्टर की तो प्रभाव अस्थायी होगा। शिक्षा का महत्व कम नहीं होने वाला। हाँ, अर्थव्यवस्था का जो हाल है और जो आगे होने वाला है उसका असर उस पर ज़रूर पड़ेगा। बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी फैलेगी, जिससे लोग शिक्षा पर होने वाले खर्चों में कटौती तो करेंगे ही। महँगी फीस लेकर शिक्षा देने वालों को सोचना होगा कि वे कैसे इन वर्गों को राहत दे सकते हैं। ये उनके भी फ़ायदे में होगा।
प्रश्न – शैक्षणिक संस्थान बंद होने से छात्रों और पैरेंट्स में टेंशन स्वाभाविक है। ऐसे हालात में छात्रों के लिए आपकी क्या सलाह है?
प्रो. मुकेश कुमार – इस संकट पर किसी का वश नहीं था इसलिए परेशानी होने के बावजूद धैर्य से काम लेने की ही सलाह दी जा सकती है। सबसे चिंता की बात शिक्षा में व्यवधान नहीं बल्कि रोज़गार का अकाल होगी। इस मामले में सरकार को ही क़दम उठाने होंगे। हम सबको मिलकर सरकार पर दबाव बनाना पड़ेगा कि वह उद्योगपतियों की न सोचकर आम अवाम के बारे में सोचे और उस हिसाब से नीतियों में परिवर्तन करे।
प्रश्न – डिजिटल टेक्नॉलॉजी के जमाने में क्या भारत के एजुकेशन सिस्टम में बदलाव होना चाहिए? यदि हाँ तो किस तरह के बदलाव कीज़रूरत है?
प्रो. मुकेश कुमार – बदलाव तो अपेक्षित हैं ही और कुछ परिवर्तन हो भी रहे हैं। लेकिन अगर लोग ये सोच रहे हैं कि इससे क्लास रूम टीचिंग को रीप्लेस किया जा सकता है तो वे ग़लत हैं। क्लासरूम और स्कूल-कॉलेज का अपना महत्व है। वे विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम के अलावा भी बहुत कुछ सिखाते हैं। नई तकनीक एवं डिजिटल टूल का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि नई पीढ़ी उसमें रची-बसी है।
अगर हम मानते हैं कि शिक्षा देश के विकास की पहली सीढ़ी है तो वह तभी मज़बूत हो सकती है जब उस पर चढ़ने का हक़ सबके पास हो और ये तभी संभव है जब वह निशुल्क हो।

प्रश्न- सरकार की प्राथमिकताओं में शिक्षा काफ़ी निचले पायदान पर रही है। इसे कितनी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है?
प्रो. मुकेश कुमार – अगर हम विश्व में अपनी कोई जगह बनाना चाहते हैं तो शिक्षा और स्वास्थ्य उसके मूलाधार हैं, मगर अफ़सोस ये है कि सरकारें इन दोनों को ही अनदेखा करती रही हैं। इन क्षेत्रों में बहुत कम निवेश करती हैं और चाहती हैं कि पूरी तरह से निजी हाथों में सौंपकर छुट्टी पा लें। मगर उनका ये सोच शिक्षा व्यवस्था का पंगु बना रहा है। इन दोनों विषयों को राज्य को अपने हाथों में लेना चाहिए और इनके बारे में उतना ही सोचा जाना चाहिए जितना कि रक्षा और उद्योगों के बारे में सोचा जाता है।
प्रश्न- क्या सभी को सभी प्रकार की शिक्षा पूर्णतया मुफ़्त प्रदान की जानी चाहिए?
प्रो. मुकेश कुमार – शिक्षा मुफ़्त में ही मिलनी चाहिए, क्योंकि हमारी एक बड़ी आबादी तो इसीलिए शिक्षित नहीं हो पाती या अल्पशिक्षित रह जाती है क्योंकि शिक्षा लगातार महँगी होती जा रही है, उस पर धन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अगर हम मानते हैं कि शिक्षा देश के विकास की पहली सीढ़ी है तो वह तभी मज़बूत हो सकती है जब उस पर चढ़ने का हक़ सबके पास हो और ये तभी संभव है जब वह निशुल्क हो।
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