हिमालय के ग्‍लेशियर पिघलने से 15 करोड़ लोगों के लिए खाने का संकट

हिमालय के ग्‍लेशियर पिघलने से 15 करोड़ लोगों के लिए खाने का संकट

‘बर्फ का खजाना’ कहे जाने वाले हिमालय के ग्‍लेशियर पिघलने का बेहद गंभीर असर अब समुद्र पर भी दिखाई देने लगा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ताजा शोध से पता चला है कि हिमालय की बर्फ पिघलने से अरब सागर में बड़े पैमाने पर जहरीला हरा शैवाल फैल रहा है। भारत, पाकिस्‍तान और खाड़ी देशों के तटों पर फैल यह शैवाल इतना विशाल है कि उसे अंतरिक्ष से भी असानी से देखा जा सकता है। 

नासा की ओर से जारी की गई तस्‍वीरों से पता चलता है कि समुद्र में पाया जाने वाला शैवाल नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स (Noctiluca scintillans) अरब सागर के तटीय इलाके में बहुत तेजी से पैर पसार रहा है। नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स को ‘समुद्री चमक’ भी कहा जाता है। रात में यह शैवाल रात में काफी चमकता है। यह एक मिलीमीटर का होता है और यह तटीय इलाके के पानी में आसानी से जिंदा रह सकता है। यह हरा शैवाल समुद्र में अपना मोटा छल्‍ला बना रहा है जिसकी वजह से यह अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है।

15 करोड़ लोगों के लिए खाने का संकट!

समुद्र की चमक कहा जाने वाले इस शैवाल के बारे में 20 साल पहले तक सुना नहीं गया था। हालांकि अब यह शैवाल अब बहुत तेजी से भारत, पाकिस्‍तान और अन्‍य खाड़ी देशों के तटों पर बहुत तेजी से अपने पैर पसार रहा है। इस शैवाल की वजह से प्‍लवकों के लिए संकट पैदा हो गया है जो अरब सागर में फूड चेन में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। इस जहरीले शैवाल की वजह से अरब सागर में मछलियों के अस्तित्‍व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दक्षिण एशिया में इन्‍हीं मछलियों पर 15 करोड़ लोग भोजन के लिए निर्भर हैं।

हिमालय की पिघल रही बर्फ है वजह

शोधकर्ताओं ने कहा है कि हिमालय और तिब्‍बत के पठार पर लगातार कम होती बर्फ से अरब सागर में समुद्र की सतह लगतार गरम हो रही है। इसकी वजह से यह शैवाल बहुत आसानी से अब तटीय इलाकों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। नासा के सैटलाइट से ली गई तस्‍वीरों से पता चला है कि नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स का सीधा संबंध ग्‍लेशियर के पिघलने और कमजोर मानसून से है। आमतौर पर हिमालय से आने वाली ठंडी हवाओं की वजह से अरब सागर की सतह ठंडी हो जाती थी लेकिन बर्फ के पिघलने से यह कम हो रहा है।

थाइलैंड से अफ्रीका तक फैला है शैवाल

नासा से जुड़े कोलंबिया विश्‍वविद्यालय के जोअक्‍यूइम गोज ने इस बदलाव पर कहा, ‘जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हमने यह संभवत: सबसे नाटकीय बदलाव देखा है। हम नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स को दक्षिण पूर्व एशिया के देशों थाइलैंड और वियतनाम और अफ्रीका के पास स्थित सेशेल्‍स में देखा गया है और यह बड़ी समस्‍या बनकर उभर रहा है।’ 1990 के दशक में पहली बार इस शैवाल को देखा गया था। इस शैवाल से न केवल फूड चेन बल्कि पानी की गुणवत्‍ता खराब हो रही है और मछलियों की मौत हो रही है।

‘अमर’ बन रही ‘समुद्री चमक’

समुद्र में मछलियां प्‍लवकों को खाकर जिंदा रहती हैं लेकिन शैवाल की वजह से प्‍लवकों पर ही संकट आ गया है। यह प्‍लवक समुद्र की ऊपर सतह पर पाए जाते हैं। उधर, नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स को सूरज के रोशनी और पोषक पदार्थों की जरूरत नहीं होती है। यह शैवाल अन्‍य जीवों का खाकर जिंदा रहता है। नॉक्टील्यूका सिल्टीलैन्स खुद को दो और फ्लजेलम से खुद को आगे बढ़ाता है। इस शैवाल को केवल जेलीफ‍श और साल्‍प्‍स खाना पसंद करते हैं। इसके प्रसार की हालत यह है कि ओमान में तो इस शैवाल की वजह से तेल रिफाइनरी को अपना काम कम करना पड़ा।

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