चिंता कोरोना से या बदलाव के शंखनाद से?

चिंता कोरोना से या बदलाव के शंखनाद से?

बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं. बिहार की राजनीति का पारा दिल्ली तक बखूबी महसूस किया जा सकता है. दिन प्रतिदिन चुनावी चकल्लस और रैलियों में जोश बढ़ता जा रहा है. कुछ समय पहले तक जो चुनाव बीजेपी जेडीयू गठबंधन के लिए एकतरफ़ा सा लग रहा था वो हर बीतते समय के साथ नीतिश-मोदी की पहुंच से दूर होता नज़र आ रहा है. बड़े-बड़े राजनेता और चुनावी पंडित यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर आरजेडी नेता का पिछले चार साल में ऐसा कैसा ट्रांसफॉरमेशन हो गया है की लोग तेजस्वी के दीवाने हो रहे हैं? क्या रैलियों में आ रहे युवाओं और बिहार की जनता ने यह तय कर लिया है कि 15 साल से प्रदेश में राज कर रहे नीतिश कुमार और सुशील मोदी के गठबंधन को उखाड़ फेकेंगे? बीजेपी-जेडीयू के स्टार प्रचारकों में खाली पड़ी कुर्सियां और तेजस्वी की रैलियों में खचाखच भीड़ कहानी खुद ब खुद बयान करती हैं.

तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ रही भारी भीड़ और आरजेडी के समर्थकों का जोश हर तरफ़ चर्चा में है. तेजस्वी के लिए दिख रहे जोश और उनके जोशिले भाषणों के वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेज़ी से शेयर हो रहे हैं. तेजस्वी की रैलियों से बिहार चुनाव के परिणाम का जो संकेत मिल रहा है उसकी चिंता और बेचैनी बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी, साहनी, कुशवाहा, पप्पू, ओवैसी, बीएसपी समेत हर उस दल में देखी जा सकती है जो आज आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के साथ नहीं है.

इन्हीं चिंताओं के बीच पिछले दो दिनों में बिहार की रैलियों को लेकर विशेष चिंता देखी गई. सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल 12 मिनट के राष्ट्र के नाम संबोधन में अचानक कोरोना पर चिंता व्यक्त की. प्रधानमंत्री ने ज़ोर दिया कि लॉकडाउन हटा है, कोरोना खत्म नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री ने सोश्ल डिस्टेंसिग पर ज़ोर दिया और बताया कि जब तक दवा और वैक्सिन नहीं आ जाती है तब तक कोई ढिलाई नहीं बरतनी है.

प्रधानमंत्री की कोरोना को लेकर चिंताओं को लेकर अब चुनाव आयोग भी हरकत में आया है और बिहार की जनता को जागरुक करने के लिए मन बना चुका है. वैसे यह बात तो सही है कि देश में रोज़ाना कोरोना के लगभग एक लाख मामले दर्ज किए जा रहे हैं और मरने वालों की तादाद एक लाख से ऊपर हो चुकी है. जहां तक बिहार का सवाल है वहां भी दो कैबिनेट मंत्री समेत नौ राजनेताओं और एक वरिष्ठ आईपीएस कोरोना के शिकार हो चुके हैं. मरने वालों की तादाद बिहार में एक हज़ार से ज्यादा हो चुकी है.     

चुनाव आयोग ने कड़ी टिप्पणी करते हुए सभी सियासी दलों को हिदायत दी है की वो अपनी रैलियों में कोरोना महामारी को सामने रखते हुए बताए गए तरीके का कड़ाई से पालन करें.  चुनाव आयोग ने कहा कि आयोग ने पाया है कि सियासी दलों के रैलियों में कोविड-19 की रोक-थाम के लिए बताए गए उसूलों का पालन नहीं किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी और चुनाव आयोग की चिंता अपनी जगह वाजिब कही जा सकती है. चुनाव आयोग के दिशा निर्देश सभी पार्टियों के लिये रहेंगे लेकिन इन सब चिंताओं का संकेत मुख्यत: तेजस्वी की रैलियों की भीड़ को छांटना और आरजेडी गठबंधन के जोश को ठंढा करने की क़वायद ज़्यादा लग रही है. अगर बिहार में तेजस्वी के रैलियों जैसी भीड़ बीजेपी गठबंधन के रैलियों में होती तो शायद न तो प्रधानमंत्री संदेश देने आते और न ही चुनाव आयोग सक्रिए होता.

बहरहाल, चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश कागज़ी नहीं रहेंगे. आयोग इस बात की भरसक कोशिश करेगा कि रैलियों से भीड़ छांट दी जाए. इसके लिए रैलियों में आने वाले लोगों को पहुंचने से पहले ही रोकने की कोशिशें भी शामिल हो सकती हैं. आयोग अपनी टीमें बिहार भी भेजेगा और संभवत: नियमों की आड़ में सख्ती से आरजेडी समर्थकों के जोश को भी कम करने की कोशिश करेगा. 

बीजेपी और चुनाव आयोग की मंशाओं पर सवाल उठना इसलिए भी लाज़िम है क्योंकि दोनों का इतिहास देश को पता है. प्रधानमंत्री मोदी जिन्होंने नमस्ते ट्रंप, मध्यप्रदेश में सरकार गिराने और बनाने के मामले में कोरोना की चिंता नहीं की उनका आज बिहार चुनाव के मद्देनज़र दर्द छलक रहा है. सवाल यह भी उठता है कि जब बिना सोचे समझे हुए अनपलान्ड रूप से बिना तैयारियों के अपरिपक्व फैसला लेकर पूरे भारत में लॉकडाउन कर के जनता को बेहाल छोड़ दिया था तब देश की चिंता प्रधानमंत्री को नहीं हुई थी? जब मज़दूर 1000-1500 किलोमीटर पैदल चल के भूखे प्यासे घर जा रहे थे तब भी प्रधानमंत्री को चिता नहीं हुई? बाढ़ में बिहारवासी परेशान रहे तब भी उन्हें चिंता नहीं हुई? क्योंकि ऐसे समय में भी प्रधानमंत्री अपने आवास पर मोर को दाना चुगाते हुए वीडियो बनवाते रहे जब देश की जनता बेहाल थी. लेकिन अब अचानक उनको एहसास हुआ है कि कोरोना का वायरस नहीं खत्म हुआ है.

बहरहाल, बिना सोचे समझे और बिना तैयारी के काम करने के आदी हैं हमारे प्रधानसेवक. आधी रात की नोटबंदी और अधकचरा जीएसटी इसी अपरिपक्वता का नतीजा थी. नोटबंदी ने 117 लोगों की जान ली थी. लोग ख़ुद अपने ही पैसों के लिए तरस गए थे और दाने-दाने को मोहताज थे. तब बड़ी बेशर्मी से ठहाका लगा कर ठेंगा दिखाते हुए प्रधानमंत्री ने भाषण दिया था कि घर में शादी है और पैसे नहीं हैं. काश प्रधानमंत्री ने अपना घर चलाया होता तो उनको समझ में आता कि परिवार का कष्ट क्या होता है. दूसरी तरफ, नोटबंदी के बाद बिना तैयारी के लादे गए जीएसटी ने पूरे देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर के रख दी जिससे देश उबर नहीं पाया. कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था बरबाद होना तो एक बहाना है. भारत की आर्थिक स्थिति तो बीजेपी सरकार ने कोरोना के पहले ही चौपट कर के रख दी थी.

वजह जो भी रहे. कोरोना की चिंता भी वाजिब है. लोगों को अपना और अपने चाहने वालों का ख़ास ख़्याल रखने की ज़रूरत है. इसबीच, बिहार में बदलाव के शंखनाद का संकेत मिलने लगा है. 

लेखक- शाहिद सईद, वरिष्ठ पत्रकार

TiT Desk
ADMINISTRATOR
PROFILE

Posts Carousel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

Latest Posts

Top Authors

Most Commented

Featured Videos

Aslan Yazılım Oyun Formu Oyun Forum Oyun Forumları Metin2 Bot Viagra Viagra Fiyat Cialis Fiyat Cialis 20 mg Cialis 100 mg Cialis 5 mg