पितृ पक्ष में खरीदारी का महत्व: पूर्वजों की प्रसन्नता, पुण्य और स्वर्ग की प्राप्ति

पितृ पक्ष को भारतीय संस्कृति में पूर्वजों का पावन काल माना गया है। धर्मग्रंथों और लोककथाओं के अनुसार, इस समय की गई खरीदारी से पितर प्रसन्न होते हैं और वंशज को धन, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। महाभारत, गरुड़ पुराण और मनुस्मृति में इसका स्पष्ट उल्लेख है कि पितृ पक्ष में जितनी अधिक खरीदारी की जाती है, उतना ही अधिक पुण्य प्राप्त होता है और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति सुनिश्चित होती है।

पितृ पक्ष का महत्व

भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) का अत्यंत पावन स्थान है। यह काल वर्ष में एक बार आता है और इसे ऐसा समय माना गया है जब हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के सत्कर्मों से संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और दान का विशेष महत्व है। परंपरा और धर्मग्रंथ यह भी कहते हैं कि पितृ पक्ष में की गई खरीदारी भी पुण्य और आशीर्वाद का कारण बनती है।

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खरीदारी से पितरों की प्रसन्नता

धर्मशास्त्र बताते हैं कि जब मनुष्य इस पावन काल में वस्त्र, अन्न, धान्य, आभूषण या गृह उपयोगी वस्तुएँ खरीदता है, तो यह केवल सांसारिक लेन-देन नहीं रहता। यह पूर्वजों को प्रसन्न करने का साधन बन जाता है।

  • गरुड़ पुराण कहता है कि श्राद्ध काल में किया गया हर सत्कर्म सीधे पितरों तक पहुँचता है।
  • माना जाता है कि खरीदारी से पितरों को यह अनुभव होता है कि उनका वंश समृद्ध है और उनकी परंपरा फल-फूल रही है। इससे वे प्रसन्न होकर अपने आशीर्वाद स्वरूप धन, सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।

महाभारत और मनुस्मृति के प्रमाण

महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं—
जो व्यक्ति पितृ पक्ष में श्रद्धा से अन्न, वस्त्र या द्रव्य का उपयोग करता है, वह केवल अपने लिए नहीं बल्कि पूरे कुल का उद्धार करता है।”

इसी प्रकार, मनुस्मृति में कहा गया है—
“श्राद्धकाले कृतं दानं अनन्तफलदायकम्।”
अर्थात, श्राद्ध काल में किया गया दान, व्यापार या खरीदारी अनंत फल देने वाली होती है।

लोककथाओं से प्रमाण

भारतीय लोक परंपरा में कई प्रसंग मिलते हैं, जो इस मान्यता को और गहराई देते हैं।

  • एक गरीब ब्राह्मण ने पितृ पक्ष में केवल एक कलश खरीदा और उसमें जल भरकर पितरों को अर्पित किया। उसकी यह श्रद्धा देखकर पितर इतने प्रसन्न हुए कि उसकी आने वाली पीढ़ियाँ धन-धान्य से सम्पन्न हो गईं।
  • एक व्यापारी ने पितृ पक्ष में नया वस्त्र खरीदा और पितरों के नाम पर गरीबों को दान कर दिया। परिणामस्वरूप उसका व्यापार अचानक उन्नति पर पहुँचा और वह नगर का सबसे बड़ा सेठ बन गया।

पुण्य और स्वर्ग की प्राप्ति

धर्मग्रंथ मानते हैं कि पितृ पक्ष में जितनी अधिक खरीदारी की जाती है, उतना ही अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

  • यह पुण्य मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति का कारण बनता है।
  • जीवित अवस्था में ऐसे व्यक्ति के जीवन में धन, अन्न और सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती।
  • पितरों के आशीर्वाद से वंशजों को आयु, विद्या, धन, संतान और स्वास्थ्य का लाभ होता है।

विष्णु धर्मसूत्र तक यह कहता है कि यदि पितर प्रसन्न हों तो वे वंशज को “आयु, पुत्र-पौत्र, विद्या और मोक्ष” प्रदान करते हैं।

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आधुनिक दृष्टिकोण

आधुनिक मनोविज्ञान भी यह मानता है कि श्रद्धा और आस्था से किया गया कार्य व्यक्ति को आत्मसंतोष और मानसिक शांति देता है। जब कोई पितृ पक्ष में खरीदारी करता है तो उसके मन में यह संतोष रहता है कि उसने अपने पूर्वजों के लिए कुछ किया है। यही भावना उसके जीवन में सकारात्मकता, संतुलन और सफलता लाती है।

निष्कर्ष

पितृ पक्ष केवल श्राद्ध और तर्पण का समय नहीं है, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है। इस अवधि में की गई हर खरीदारी पूर्वजों को आनंद देती है और खरीदार को पुण्य, सुख, समृद्धि और मृत्यु के बाद स्वर्ग का मार्ग प्रदान करती है।

यही कारण है कि कहा गया है—
“पितृ पक्षे कृतं कर्म, सर्वं भवति शाश्वतम्।”
अर्थात, पितृ पक्ष में किया गया हर कार्य शाश्वत फल देने वाला होता है।

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