December 17, 2024

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे : गुलामों ! बधाई हो पाकिस्तान हमसे भी नीचे है

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आज का दिन प्रेस के नाम है। 3 मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाता है। कोरोना महायुद्ध के बीच इस साल भी प्रेस अपनी फ्रीडम का आनंद ले रहा है। भारत की प्रेस के लिए इस साल भी जश्न मनाने का अवसर है। ये अवसर हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने दिया है। दरअसल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में हम पाकिस्तान से पूरे तीन पायदान ऊपर हैं। 180 देशों की सूची में भारत की रैंक 142वीं है और पाकिस्तान की रैंक है 145वीं। इसलिए गाजे-बाजे के साथ जश्न मनाने का अवसर तो बनता है। मेगा शो होना चाहिए। चूंकि देश में लॉकडाउन है इसलिए कैंडल या दीये की रोशनी में ताली और थाली बजाकर जश्न मना सकते हैं। बड़ा ही मनोहारी दृश्य होगा। आनंद आ जाएगा। पत्रकार होने पर फ़क्र महसूस होगा।

भारत में पत्रकारों को प्रताड़ित करने वालों में पुलिस, राजनीतिक कार्यकर्ता और भ्रष्ट अधिकारी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया पर दबाव डाला।

   प्रेस फ्रीडम इंडेक्स हमें एक और बड़ी राहत देता है। पिछले साल भारत 139वीं रैंक पर था अर्थात इस साल हम 3 स्थान नीचे खिसके हैं। लेकिन चिंता वाली बात नहीं; क्योंकि पाकिस्तान भी इस साल 3 पायदान नीचे लुढ़क गया है। यही नहीं बांग्लादेश ( रैंक – 151) और चीन (रैंक -177 ) से हम बहुत बेहतर हैं। लेकिन पता नहीं हमारे छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्क़ मसलन भूटान (रैंक -67) , नेपाल (रैंक-112) , अफगानिस्तान (रैंक-122) , श्रीलंका (रैंक-127) और  म्यांमार (रैंक-139) हमसे कैसे आगे निकल गए। खैर कोई बात नहीं, इनसे हमें कोई खतरा नहीं। असली खतरा तो हमें चीन और पाकिस्तान से है और उनसे हम आगे हैं ही। एक और खुशी की बात है भले ही हम पिछले चार सालों से नीचे खिसक रहें हों लेकिन हम अकेले नहीं हैं पाकिस्तान भी तो नीचे खिसक रहा है। 2016 में हम 133वें पायदान पर थे। मामूली गिरावट के साथ 2017 में 136,  2018 में 138,  2019 में 140 और 2020 में 142 तक हम पहुंचे हैं। उम्मीद है कि आगे भी गिरावट का हमारा ये शानदार प्रदर्शन जारी रहेगा। जब तक पाकिस्तान और चीन गिरता जाएगा हमारे लिए चिंता वाली कोई बात नहीं। ये अलग बात है कि वर्ष 2002 में भारत 80वें पायदान पर था और पाकिस्तान की रैंक थी 119वीं। हमारी गिरावट ज्यादा तेजी से हुई तो क्या; हमारे देश ने तेजी से विकास भी तो किया है।

सारा दारोमदार संतुलन पर है। यानि कि ये संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है। हर किसी के लिए। यहीं से खेल शुरू होता है। संतुलन का खेल। इस खेल के माहिर खिलाड़ी संतुलन का खेल बखूबी खेलते हैं। माहिर खिलाड़ी चारों स्तम्भों में हैं। खेल जारी है।

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे

1991 में अफ्रीका के पत्रकारों के संघ ने प्रेस की आजादी के लिए मुहिम शुरू की। इसके लिए उन्हेंने यूनेस्को (UNESCO) का साथ लिया। यूनेस्को ने नामीबिया की राजधानी विंडहोक (Windhoek) में 29 अप्रैल से 3 मई 1991 तक एक सेमिनार किया। इस सेमिनार में स्वतंत्र और बहुलतावादी प्रेस के विकास विषय पर एक घोषणापत्र (Declaration for the Development of a Free, Independent and Pluralistic Press) रखा गया। इसे विंडहोक घोषणापत्र (Windhoek Declaration) कहते हैं। इसके बाद यूनेस्को ने पूरी दुनिया में इसका प्रचार-प्रसार किया। इस तरह 3 मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाने लगा।

इस दिन को मनाने का मकसद है प्रेस की आजादी के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सरकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रति उनके कर्तब्य को याद दिलाना। दरअसल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत ही प्रेस काम करता है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए ये अधिकार संजीवनी की तरह होता है। हालांकि ये अधिकार सरकारों को बिलकुल भी पसंद नहीं आता है। चूंकि मानवाधिकारों में इस अधिकार को शामिल किया गया है इसलिए यह आवश्यक हो जाता कि हर देश में प्रेस को फ्रीडम दी जाए। ये अलग बात है कि हरेक देश की सरकार अपने मिजाज के अनुसार इस पर अमल करती है। दुनिया के 180 देशों की सरकारों के इसी मिजाज का आकलन करके जो रिपोर्ट बनती है उसे कहते हैं प्रेस फ्रीडम इंडेक्स।

ये तथ्य सब जानते हैं कि दुनियाभर में पत्रकारों का उत्पीड़न किया जाता है। उन्हें डराने-धमकाने से लेकर मारपीट और हत्या तक कर दी जाती है। मीडिया संस्थानों पर सरकारें दवाब बनाती हैं कि उनके मनमाफिक चलें। जो संस्थान ऐसा नहीं करते उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है।

कौन है दोषी ?

ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रैंकिंग जारी करने वाली संस्था आरएसएफ – रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट कहती है कि

प्रेस की आजादी जब मूल अधिकारों से मिली है तो फिर इतने बड़े लोकतंत्र में प्रेस के पास आजादी क्यों नहीं है? जब मूल अधिकार सरकार भी छीन नहीं सकती तो फिर प्रेस से आजादी छीनी किसने? जबकि मूल अधिकारों का संरक्षण सुप्रीम कोर्ट करती है। क्या कोई सरकार और सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा और ताकतवर है जिसने प्रेस की आजादी छीन ली?

रिपोर्ट से साफ है कि सत्ता प्रेस की आजादी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। इसलिए प्रेस को दबाने के लिए अपनी पावर का इस्तेमाल करती है। सवाल उठता है कि क्या किसी लोकतांत्रिक देश में ये इतना आसान है? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी को आर्टिकिल 19 के तहत मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। मूल अधिकारों का सीधा मतलब है कि वो अधिकार जिसे हमसे कोई भी छीन नहीं सकता है। इसी मूल अधिकार से प्रेस चलता है। संविधान में प्रेस के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है। इसकी जरूरत भी नहीं थी। क्योंकि जब संविधान के सबसे ताकतवर अधिकारों में अभिव्यक्ति के अधिकार को शामिल किया गया है तो उसके बाद और किसी प्रावधान की जरूरत ही नहीं है।

अब सवाल उठता है कि प्रेस की आजादी जब मूल अधिकारों से मिली है तो फिर इतने बड़े लोकतंत्र में प्रेस के पास आजादी क्यों नहीं है? जब मूल अधिकार सरकार भी छीन नहीं सकती तो फिर प्रेस से आजादी छीनी किसने? जबकि मूल अधिकारों का संरक्षण सुप्रीम कोर्ट करती है। क्या कोई सरकार और सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा और ताकतवर है जिसने प्रेस की आजादी छीन ली?

दरअसल इस सवाल का जवाब प्रेस के पास ही है। संविधान ने आम जनता को सबसे अधिक पावर दी है। सरकार चुनने का अधिकार जनता के पास है। जनता इसलिए सरकार बनाती है कि वो देश को संविधान के मुताबिक चलाए। संविधान ने जनता को अभिव्यक्ति की आजादी का मूल अधिकार भी दिया है; कि यदि सरकार संविधान के मुताबिक काम न करे तो उसे उसका सही रास्ता दिखाया जा सके। अब सारी जनता तो इतनी पढ़ी लिखी है नहीं। इसलिए कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने ये जिम्मेदारी संभाली जिसे प्रेस कहा जाता है। प्रेस को ये जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से संभालनी चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र के जो चार स्तम्भ हैं ( विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस) उनमें चौथे स्तम्भ यानि प्रेस के कंधों पर बड़ी जिम्मेवारी है। इन चारों स्तम्भों पर लोकतंत्र टिका है। यदि संतुलन बिगड़ा तो लोकतंत्र डगमगाने लगता है। सारा दारोमदार संतुलन पर है। यानि कि ये संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है। हर किसी के लिए। यहीं से खेल शुरू होता है। संतुलन का खेल। इस खेल के माहिर खिलाड़ी संतुलन का खेल बखूबी खेलते हैं। माहिर खिलाड़ी चारों स्तम्भों में हैं। खेल जारी है।

लेखक- महेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

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