फली एस. नरीमन के 7 प्रसिद्ध केस जिन्होंने बदल दिया संविधान
नई दिल्ली, 21 फरवरी 2024: भारत के प्रख्यात न्यायविद और वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस. नरीमन का आज निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। नरीमन का जन्म 1929 में हुआ था और उन्होंने 1955 में सुप्रीम कोर्ट में अपना करियर शुरू किया। एक वकील के रूप में उनका करियर 75 वर्षों से अधिक का था, जिसमें पिछली आधी शताब्दी उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील के रूप में बिताई थी। 1971 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया। इस दौरान, उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों में कानून और कानूनी पेशे पर अपनी छाप छोड़ी।
नरीमन ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी की, जिनमें शामिल हैं:
• केशवानंद भारती मामला: इस मामले में उन्होंने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• मिनर्वा मिल्स मामला: इस मामले में उन्होंने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को लागू करने में मदद की।
• एस.आर. बोम्मई मामला: इस मामले में उन्होंने राज्यों के गवर्नरों की शक्तियों को सीमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• टी.एम.ए. पाई मामला: इस मामले में उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद की।
नरीमन न केवल एक कुशल वकील थे, बल्कि एक प्रखर विचारक और लेखक भी थे। उन्होंने कई किताबें और लेख लिखे हैं, जिनमें “The Indian Judiciary: A Socio-Legal Perspective” और “The Constitution of India: A Comparative Study” शामिल हैं।
नरीमन को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री शामिल हैं।
नरीमन का निधन भारत के लिए एक बड़ी क्षति है। वे न केवल एक महान न्यायविद थे, बल्कि एक सच्चे देशभक्त भी थे। उनका जीवन और कार्य आने वाले कई वर्षों तक लोगों को प्रेरित करता रहेगा।
Read Also…
मृत्यु के बाद के कर्मकांड
हिन्दू मन का भटकाव, कारण और निवारण
TV actor Rituraj Singh dies : टीवी अभिनेता ऋतुराज सिंह का निधन: हृदय गति रुकने का कारण क्या था?
फली एस. नरीमन के प्रसिद्ध केस
1. केशवानंद भारती मामला (1973)
यह मामला भारत के संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण था। नरीमन ने इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि संविधान का मूल ढांचा अपरिवर्तनीय है और संसद इसे बदलने की शक्ति नहीं रखती है। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि संविधान का मूल ढांचा अपरिवर्तनीय है।
2. मिनर्वा मिल्स मामला (1980)
इस मामले में नरीमन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि बुनियादी ढांचे का सिद्धांत न केवल संविधान के मूल ढांचे पर लागू होता है, बल्कि संविधान के अन्य प्रावधानों पर भी लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि बुनियादी ढांचे का सिद्धांत संविधान के सभी प्रावधानों पर लागू होता है।
3. एस.आर. बोम्मई मामला (1994)
इस मामले में नरीमन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि राज्यों के गवर्नरों की शक्तियां सीमित हैं और वे मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि राज्यों के गवर्नरों की शक्तियां सीमित हैं।
4. टी.एम.ए. पाई मामला (2002)
इस मामले में नरीमन ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपने प्रबंधन का अधिकार है और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपने प्रबंधन का अधिकार है।
5. इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975)
इस मामले में नरीमन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अनुचित तरीकों का इस्तेमाल किया था। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया जाना चाहिए।
6. मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (1977)
इस मामले में नरीमन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि मनमानी गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि मनमानी गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकार है।
7. बंधुआ मजदूर मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार (1983)
इस मामले में नरीमन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने तर्क दिया कि बंधुआ मजदूरी प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने नरीमन के तर्कों को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि बंधुआ मजदूरी प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक है।