कोरोना से बड़ा संकट भूख और बेरोजगारी
कोरोना की महामारी कब समाप्त होगी यह कहना तो काफी मुश्किल है. कोरोना संकट अमेरिका जैसे देशों की समझ से भी परे है. हल किसी को समझ में नहीं आ रहा है. इस महामारी से दुनिया भर के मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. चीन के वुहान शहर से निकला यह वायरस अमेरिका में सबसे ज्यादा कहर बरपा रहा है. मौत का अनुपात देखें तो हर पांच मरने वालों में से एक इंसान अमेरिकी है. अमेरिका की आर्थिक स्थिति भी काफी हद तक चरमराई दिख रही है. लॉकडॉउन के कारण तेल की मांग नहीं होने से अमेरिका में कच्चे तेल का दाम में लगातार गिरावट देखी जा रही है.
कोरोना वायरस के भारत में पहुंचने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक थी. कभी दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की विकास दर बीते साल 4.7 फ़ीसदी रही जो छह सालों में विकास दर का सबसे निचला स्तर था. साल 2019 में भारत में बेरोज़गारी 45 सालों के सबसे अधिकतम स्तर पर थी और पिछले साल के अंत में देश के आठ प्रमुख क्षेत्रों से औद्योगिक उत्पादन 5.2 फ़ीसदी तक गिर गया. यह बीते 14 वर्षों में सबसे खराब स्थिति थी. यानी भारत की आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब हालत में थी. अब कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर संकट है तो पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था के लिए और बड़ा झटका है. लेकिन सबसे बड़े झटके की खबर तब आई जब इतिहास में पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने भारत की ग्रोथ रेट जीरो होने का अनुमान लगाया. और इन सब के पीछे की सीधी वजह है कोरोना वायरस का संक्रमण और लॉकडाउन.दुनियाभर में फाइनेंशियल सर्विंसेज देने वाली कंपनी बारक्लेज ने भारत की कैलैंडर ईयर 2020 के लिए जीडीपी अनुमान घटाकर जीरो कर दिया है.
मतलब एजेंसी के अनुमान के मुताबिक उसे भारत की इकनॉमी की कोई ग्रोथ नहीं नहीं दिख रही है. इसके पहले भी बारक्लेज ने 2.5 परसेंट ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया था. वहीं इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने भी आर्थिक मोर्चे पर बुरी खबर दी. आईएमएफ का पूर्वानुमान है कि भारत की साल 2020 में ग्रोथ रेट 1.9% के आसपास रह सकती है. इसके अलावा IMF ने बताया है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते दुनियाभर में गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे जिसमें आर्थिक मंदी मुख्य रूप से आ सकती है.
दुनियाभर में फाइनेंशियल सर्विंसेज देने वाली कंपनी बारक्लेज ने भारत की कैलैंडर ईयर 2020 के लिए जीडीपी अनुमान घटाकर जीरो कर दिया है.
इस बीच, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोरोना संकट की चुनौतियों को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से चर्चा की. इस चर्चा में राहुल गांधी ने कम टेस्टिंग, सत्ता का केंद्रीयकरण और लॉकडाउन से आने वाली आर्थिक दिक्कत को लेकर रघुराम राजन से बात की, जिसके जरिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर बड़े सवाल खड़े किए.
भारत में 10 करोड़ होंगे बेरोजगार
इस समय दुनियाभर में लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में हैं और मरने वालों का आंकड़ा बेहद चिंताजनक है. अमेरिका के बाद इटली, स्पेन, युनाइटेड किंग्डम और फ्रांस.. यह पांच ऐसे देश हैं जहां इस महामारी का सबसे अधिक असर देखा जा रहा है. दूसरी तरफ, चीन जहां से यह वायरस फैला था वहीं अब हालात काफी कंट्रोल में हैं. इस पर तरह तरह की बातें उठ रही हैं कि यह वायरस खुद से नहीं बल्कि मानवनिर्मित है और चीन ने दुनियाभर की आर्थिक दुर्गति करने के लिए यह वायरस बनाया है. हालाकि तथ्यों के बिना इस तरह के किसी भी आरोपों का कोई मतलब नहीं बनता है. फिलहाल तो दिनों-दिन पूरी दुनिया में हालत बिगड़ती जा रही है. जाहिर है कि भारत भी इससे अछूता नहीं है.
कोविड 19 में तीन तरह के वायरस हैं और उसमें जो सबसे डेडली क्षमता का वायरस है वो वायरस वुहान से जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका पहुंचा. और फिर नमस्ते ट्रंप में आए विदेशी मेहमानों के माध्यम से गुजरात पहुंचा है. ऐसा अंदेशा है अकेले गुजरात में आठ लाख कोरोना के मरीज होंगे. यह बड़ी भयावह स्थिति होगी. जब कोरोना का कहर समाप्त होगा तब दुनिया भर में करोड़ों लोगों की नौकरी जा चुकी होगी. इसका एक सबसे बड़ा कारण तो यह होगा कि लोगों के पास खरीदारी की क्षमता ही नहीं होगी तो सामान कहां बिकेंगे. और जब बाजार में मांग ही नहीं होगी तो उत्पादन भी कम होगा. ऐसे में कंपनियां अधिकतर लोगों को नौकरी से निकाल देंगी. यह विश्वव्यापी होगा. 28 अप्रैल को ब्रिटिश एयरवेज ने अपने 12 हजार स्टाफ को नौकरी से निकाल दिया है. भारत के कई एयरलाइंस जिन्होंने अपने लोगों को बिना वेतन छुट्टी पर भेज रखा है वो भी ऐसा ही कदम उठायेंगी. सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (CAPA) के अनुमान के मुताबिक एविएशन इंडस्ट्री को करीब चार अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ेगा. इसका असर हॉस्पिटैलिटी और टूरिज्म सेक्टर पर भी होगा. देश में होटल और रेस्टोरेंट चेन बुरी तरह प्रभावित हैं और कई महीनों तक यहां सन्नाटा पसरे रहने से बड़ी संख्या में लोगों को सैलरी न मिलने का भी संकट होगा.
एमएसएमई क्षेत्र का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान रहता है. इस क्षेत्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 15 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से MSMEs को जोरदार झटका लगा है,
बंद की वजह से ऑटो इंडस्ट्री पर भी अछूती नहीं है और करीब दो अरब डॉलर का अनुमानित नुकसान झेलना पड़ सकता है. संकट का असर दुनिया भर में काम कर रहे भारतीय लोगों पर भी होगा. क्योंकि किसी भी देश में कंपनिया कर्मचारियों की जब छटनी करेंगी तो उनके ऊपर भारी दबाव रहेगा की अपने देश के लोगों को रख कर विदेशियों को निकालें. हर देश इसी प्रकार के कदम उठाएगा. कोई नहीं चाहेगा की अपने देश के लोग बेरोजगार हों और बाहरी मुल्कों से आए लोगों को रोजगार दिया जाए.
बेरोजगारी का भारत में क्या हाल होगा वो राहुल गांधी और रधुराम राजन के बीच हुई बातों से बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है. राहुल गांधी ने सवाल किया था कि कोरोना संक्रमण से नौकरियों पर क्या असर पड़ेगा. इस पर जवाब देते हुए रघुराम राजन ने कहा कि आंकड़े बहुत ही चिंतित करने वाले हैं. सीएमआईई के आंकड़े देखो तो पता चलता है कि कोरोना संकट के कारण करीब 10 करोड़ और लोग बेरोजगार हो जाएंगे. 5 करोड़ लोगों की तो नौकरी जाएगी, करीब 6 करोड़ लोग श्रम बाजार से बाहर हो जाएंगे. आप किसी सर्वे पर सवाल उठा सकते हो, लेकिन हमारे सामने तो यही आंकड़े हैं. यह आंकड़े बहुत व्यापक हैं. इससे हमें सोचना चाहिए कि नापतौल कर हमें अर्थव्यवस्था खोलनी चाहिए, लेकिन जितना तेजी से हो सके, उतना तेजी से यह करना होगा जिससे लोगों को नौकरियां मिलना शुरू हों.
सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (CAPA) के अनुमान के मुताबिक एविएशन इंडस्ट्री को करीब चार अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ेगा. इसका असर हॉस्पिटैलिटी और टूरिज्म सेक्टर पर भी होगा.
डूबेंगे कई सेक्टर
कोरोना संकट के कारण रियलइस्टेट का बहुत बुरा हाल होने वाला है. लोगों के पास ना तो नौकरी होगी और ना पैसे तो जाहिर है मकान कहां बिकेंगे! रियलइस्टेट की पहले से ही हालत खराब थी. अगर सिर्फ दिल्ली एनसीआर की बात की जाए तो लाखों फ्लैट खरीदादरों के इंतजार में वर्षों से बाट जोह रहे हैं. अकेला रियलस्टेट लगभग 30 तरह के उद्योगों को अपने साथ जोड़ने और तोड़ने का काम करता है. यानी मकान बिकेगा तो ईंटा, सीमेंट, बालू, सरिया, स्टील, टीन, कील, तार, चारकोल, गिट्टी, पत्थर, चूना, पेंट, मार्बल, टाइल्स, फिटिंग फिक्सचर्स की सामाग्रियां जैसे रबर, प्लास्टिक, पाइप, नल, शीशा, ग्रिल, लकड़ी, इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे बल्ब, वायर, स्वीच, स्वीच बोर्ड, सॉकेट, टीवी, एसी, फ्रीज, वाशिंग मशीन, इंटरकॉम और फायर फाइटिंग जैसे सामनों की बिक्री होगी. लोकिन रियलस्टेट के कारोबार ठप होने से उससे जुड़े सारे उद्योग चौपट हो जाएंगे. ऐसे में इन स्थानों और उद्योगों से जुड़े लोगों को बड़ा झटका लगेगा.
इन सब के अलावा भी कई कंपनियों में बहुत कम नौकरियां रहेंगी. जो कर्मचारी बचेंगे वो नौकरी के मामले में भले ही खुशकिस्मत होंगे लेकिन उनका मानसिक, शारीरिक और आर्थिक उत्पीड़न होगा. अब एक आदमी को आठ आदमी के बराबर काम करना होगा और पहले अगर लाख रुपया किसी को वेतन मिलता था तो शायद 40 हजार रूपया ही कंपनियां दें.. और समय समय पर यह धमकी भी शायद सुनने को मिले की नहीं करना है तो जा सकते हो, बाहर बहुत बेरोजगार बैठे हैं.
कुल मिला कर संकट गहरा होगा. लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं होंगे. खाने-पीने का सामान और भी महंगा हो जाएगा. महंगा होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इस साल कोरोना संकट के पूरे विश्व में अनाज का उत्पादन मात्र 40 फीसदी ही बमुश्किल से हो पाएगा. दुनिया भर में लाखों एकड़ में फसलें खड़ी तो हैं लेकिन कोरोना के डर और दुनियाभर में लॉकडॉउन के कारण ना तो फसलों की सही से कटाई हो रही है और ना प्रॉपर फूड प्रॉसीसिंग. लोगों में इतना डर है की बड़े से बड़े किसान सिर्फ अपनी जरूरत के हिसाब से फसलों की कटाई कर रहे हैं. उनको इस बात की आशंका है कि आगे स्थितियां काफी बिगड़ने वाली हैं इसलिए वो अपना अनाज बेचने के बजाए अपने परिवार के लिए ही सारा राशन जमा कर रहे हैं.
MSME करें मजबूत
कोरोना के कहर से बढ़ती इंसानी मौतों के बीच भूख और बेरोजगारी सबसे बड़ी चिंता है. इसकी मार बहुत भयावह होने वाली है. अमेरिका के कई शहरों में मॉल में खाने-पीने के सामान नहीं हैं तो कई मॉल में बहुत कम हैं. सामानों की राशनिंग की जा रही है. एक आदमी को दो दिन से अधिक का सामान नहीं बेचा जा रहा है. इधर भारत में सामान तो मिल रहा है लेकिन कई स्थानों पर चीजें महंगी मिल रही है. बाबा रामदेव जिन्होंने पीएम केयर फंड में करोड़ों रूपए का दान दिया है वो गरीबों से उगाही में लग गए है. रामदेव आटा पर 45 रूपया बढ़ा दिया गया है.
महामारी के चपेट में आए शीर्ष के पांच देशों की संपन्नता और स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए यदि भारत के बारे में सोचा जाए तो संकेत भयावह लगते हैं. क्योंकि भारत की आबादी इन देशों से कहीं अधिक है लेकिन ना तो स्वास्थ्य सेवाएं कहीं टिकती हैं और ना ही संपन्नता. देश के 100 लोगों के पास ही देश के कुल धन का लगभग 80% धन है. बाकियों की किसी तरह दाल-रोटी चल रही है.
भारत की आबादी का बहुत बड़ा वर्ग रोजाना कमाने खाने वाला है. देश की आबादी का बहुत बड़ा वर्ग MSME (माइक्रो, स्मॉल एवं मीडियम इंटरप्राइजेज) पर निर्भर करता है. समस्या यह है कि ऐसे उद्योगों के पास बैक-अप के नाम पर सप्ताह से पंद्रह दिनों का ही माल और धन होता है. लंबे ल़कडॉउन से यह धंधा तो ऐसे ही पिट चुका है. और जहां तक बड़े उद्योग धंधे और बड़ी फैक्टरियों का सवाल है वो भी अभी बंद हैं. वहां भी काम करने वाले अधिकतर लोग बिना वेतन के घर बैठने को मजबूर हैं. एमएसएमई क्षेत्र का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान रहता है. इस क्षेत्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 15 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से MSMEs को जोरदार झटका लगा है, कोरोना के काल से निकलने के बाद सरकार के सामने MSMEs को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करना एक बड़ी चुनौती होगी. MSME सेक्टर को अगर नजरअंदाज किया गया तो एमएसएमई संकट विनाशकारी होगा और हमारी अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा.
बढ़ेगा अनाज संकट
उत्पादन में आई विश्वव्यापी कमी के कारण सरकारों को बाहरी देशों से भी अनाज खरीद पाना आसान नहीं होगा क्योंकि किल्लत हर जगह होगी. हालांकि हर देश की सरकार के पास तकरीबन दो साल का अनाज स्टॉक में होता है लेकिन उसका सही इस्तेमाल हो भी जाए तब भी समान रूप से वितरण की समस्या रहेगी और कीमतों में काफी बढ़ोतरी देखी जाएगी. हालाकि खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने कहा है कि संकट के इस घड़ी में सरकार आवश्यक वस्तुओं की बाजार में उपलब्धता पर नजर बनाए हुए है. जरुरी सामानों की किल्लत न हो इसलिए केंद्र सरकार और राज्यों की सरकार आपस में संपर्क में है. पासवान ने कहा कि इस संकटकाल में सभी उत्पादकों और व्यापारियों से अपील कि है की मुनाफाखोरी नहीं करें. सरकार के पास डेढ़ साल तक अनाज की कमी नहीं होगी. किसानों ने गेहूं की कटाई शुरू कर दी है तो अनाज और भी ज्यादा बढ़ जाएगा. भारतीय खाद्य निगम के पास अभी 524 लाख मेट्रिक टन अनाज है.
केंद्र का आर्थिक पैकेज नाकाफी
भारत में लॉकडाउन को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विशेष आर्थिक पैकेज का एलान तो किया है लेकिन यह नाकाफी है. मोदी सरकार ने 80 करोड़ गरीबों को अगले तीन महीने तक 5 किलो आटा या चावल और एक किलो दाल मुफ़्त देने की घोषणा की है. इसके अलावा गरीब महिलाओं को सिलेंडर भी मुफ़्त में मिलेगा.
1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का एलान करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि गरीबों के लिए खाने का इंतज़ाम किया जाएगा और डीबीटी के माध्यम से पैसे भी ट्रांसफ़र किए जाएंगे. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि प्रवासी मजदूरों और शहरी-ग्रामीण गरीबों की तुरंत आवश्यकता के लिए पैकेज तैयार है, कोई भी भूखा नहीं रहेगा. इसके अलावा सरकार ने ईपीएफ को लेकर भी बड़ी घोषणा की. इसके तहत तीन महीनों तक कंपनी और कर्मचारी, दोनों के हिस्से का योगदान सरकार की ओर से जाएगा. यह घोषणा उन संस्थानों के लिए है जहां 100 से कम कर्मचारी हैं और 90 फ़ीसदी कर्मचारियों का वेतन 15 हज़ार रुपये से कम है. सरकार की यह घोषणाएं काफी देर से और काफी कम हुई. जर्मनी ने अपने जीडीपी का जहां सर्वाधिक 20 फीसदी कोरोना संकट में राहत पैकेज पर लगाया है वहीं भारत ने अपने जीडीपी का मात्र एक फीसद सहायता देने का ऐलान किया है. इस ऐलान के चंद दिनों बाद ही कर्मचारियों के डी.ए. भत्ते पर इस साल रोक लगा दी गई. इसीबीच बैंकों ने भी बचत खातों और एफडी पर ब्याज दरें घटा दीं।
भारत में असंगठित क्षेत्र देश की करीब 94 फ़ीसदी आबादी को रोजगार देता है और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 45 फ़ीसदी है. लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र पर बुरी मार पड़ी है क्योंकि रातोंरात हज़ारों लोगों का रोजगार छिन गया. इसीलिए सरकार की ओर से जो राहत पैकेज की घोषणा की गई वो गरीबों पर आर्थिक बोझ कम करने के उद्देश्य से हुई. सरकार ने राहत पैकेज में किसानों के लिए अलग से घोषणा की है. सरकार अप्रैल से तीन महीने तक किसानों के खातों में हर महीने 2000 रुपये डालेगी. सरकार किसानों को सालाना 6000 रुपये पहले ही देती थी.
ठोस कदम जरूरी
समस्या यह भी है कि गरीबों और मजबूरों की तादाद खुद सरकार के अनुसार 80 करोड़ है जबकि सहायता उस अनुपात में काफी कम लोगों तक पहुंच पा रही हैं. इस समय कई एनजीओ और रसूखदार लोग अपने अपने स्तर पर लोगों को यथासंभव मदद करने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन वो भी ऊंट के मुंह में जीरा वाली बात है. समस्या यह भी है कि लॉकडॉउन और अधिक बढ़ाए जाने की संभावना है. कोरोना पर जीत के लिए यह जरूरी भी है कि टेस्टिंग काफी अधिक बढ़ा दी जाए और साथ में लॉकडॉउन भी रहे. लेकिन इसका असर गरीबों और बेरोजगारों पर और अधिक भयावह होगा. सरकार की सहायता हर जगह पहुंच नहीं पा रही है और जो एनजीओ या रसूखदार लोग मदद कर रहे हैं वो बेचारे भी कब तक कर पाएंगे? उनकी भी तो एक सीमित आर्थिक क्षमता है और उसी हद तक वो सहायता कर पाएंगे.
ऐसे में सरकार को कांग्रेस पार्टी के सुझावों पर गौर करना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिखे पत्र को तरजीह देना चाहिए. सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नेरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर सुझाव दिया था कि MSME सेक्टर के लिए 1 लाख करोड़ से अधिक का पैकेज केंद्र सरकार को ऐलान करना चाहिए. ऐसा करने से ना सिर्फ लोगों की नौकरियां बचेंगी बल्कि इस सेक्टर का मनोबल भी बरकरार रहेगा. कांग्रेस अध्यक्ष ने दूसरा सुझाव दिया कि MSME सेक्टर के लिए 1 लाख करोड़ के क्रेडिट गारंटी फंड का निर्माण किया जाना चाहिए. ऐसा करने से सेक्टर में लिक्विडिटी के साथ सेक्टर के पास पर्याप्त पूंजी पहुंच जाएगी. जिसका इस्तेमाल MSME सेक्टर उस वक्त कर सकेगा जब उसे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी. अपने तीसरे सुझाव में सोनिया गांधी ने MSME सेक्टर के लिए एक 24 घंटे हेल्पलाइन जारी करने की मांग की है. साथ ही उन्होंने अपने सुझाव में कहा है कि आरबीआई और अन्य कॉमर्शियल बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस सेक्टर से जुड़े छोटे व्यापारियों को कर्ज समय पर मिले. अपने चौथे सुझाव में सोनिया ने निवेदन किया कि MSME द्वारा लिए गए कर्ज पर ब्याज के भुगतान को 3 महीने के लिए टाला जाए और सरकार इस सेक्टर से जुड़े टैक्स को माफ करने या फिर कम करने पर विचार करे. अपने पांचवे सुझाव में उन्होंने कहा कि सरकार को MSME सेक्टर को जिन वजहों से लोन मिलने में रुकावटें पैदा हो रही हैं, उन्हें जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में यह सुझाव भी दिया कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों और नौकरशाहों के विदेश दौरों को स्थगित करने और सरकारी विज्ञापनों पर भी रोक लगाने की जरूरत है. सोनिया ने सांसदों के वेतन में 30 फीसदी की कटौती का समर्थन करते हुए कहा कि ‘पीएम केयर्स’ कोष की राशि को भी प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में हस्तातंरित किया जाए. सोनिया के ऐसा कहने का मुख्य उद्देश्य यह है कि पीएम केयर्स फंड में कोई ऑडिट का ऑपशन नहीं है इसलिए उस फंड में कोई ट्रांसपेरंसी नहीं है. कांग्रेस ने जन धन, पीएम किसान और वृद्ध-विधवा-दिव्यांग पेंशन के सभी खाताधारकों को 7500 रुपये तत्काल कैश ट्रांसफर का सरकार को सुझाव दिया था.
कांग्रेस ने टेलीविजन, प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया को दिये जाने वाले सभी सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाये. ऐसा करने से 1250 करोड़ रुपये सालाना बचत होगी जिसका इस्तेमाल कोरोना से जंग में किया जाना चाहिये. सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत सरकारी बिल्डिंग में कंस्ट्रक्शन के लिए जो 20 हजार करोड़ सेंट्रल विस्टा परियोजना को आवंटित किये गये हैं, रोक दिया जाये. तर्क है कि संसद की मौजूदा बिल्डिंग से भी काम किया जा सकता है और बचत राशि से PPE की खरीदारी और अस्पताल में सुधार जैसी सुविधाएं बढ़ायी जा सकती हैं.
सांसदों की पेंशन और सैलरी में की गयी 30 फीसदी की कटौती से बची रकम का इस्तेमाल मजदूरों, किसानों, छोटे कारोबारियों को आर्थिक मदद देकर किया जा सकता है.
कोरोना संकट को लेकर प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों फोन पर सोनिया से बात की थी और उनसे सुझाव मांगे थे. लेकिन बीजेपी ने इन सुझावों पर आरोप लगाया कि जब देश कोरोना वायरस महामारी से लड़ने का प्रयास कर रहा है ऐसे वक्त में कांग्रेस खबरों में बने रहने के लिए ‘आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति’ कर रही है और उनकी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी जनता को गुमराह कर रहीं हैं. इस बीच, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना पर रोक लगाने की एक पेटीशन को खारिज कर दिया है.
जी20 देशों की अहम बैठक
जी20 देशों के नेताओं ने कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए इससे लड़ने के लिए विश्व की अर्थव्यवस्था में पांच हजार अरब डॉलर खर्च करने का ऐलान किया. कोरोना वायरस के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी की दहलीज पर है. इसी के मद्देनजर सऊदी अरब के सुल्तान किंग सलमान की अध्यक्षता में जी20 देशों की आपातकालीन बैठक हुई थी. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए शामिल हुए थे. बैठक में सऊदी अरब के शाह सलमान ने समूह- 20 के नेताओं से आग्रह किया कि वे कोरोना वायरस महामारी से उत्पन्न वैश्विक संकट से निपटने के लिए “प्रभावी और समन्वित” कार्रवाई करें. उन्होंने विकासशील देशों की मदद करने का भी आह्वान किया. जी-20 वीडियो कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वास्थ्य सुविधा से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जैसे वैश्विक संगठनों को मजबूत करने की अपील करते हुए कहा कि वैश्विक महामारी से निपटने के लिए प्रभावी टीका विकसित करने के वास्ते डब्ल्यूएचओ को मजबूत करना जरूरी है.
चीन से निकलने की इच्छुक दूसरे देशों की खासकर जापान और अमेरिका की कंपनियों को हर हाल में भारत में लाने की कोशिश में सरकार जुट गई है.
चीन का विकल्प बनेगा भारत?
इस बीच भारत ने एक अच्छा कदम उठाया है. इसका असर क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन चीन से निकलने की इच्छुक दूसरे देशों की खासकर जापान और अमेरिका की कंपनियों को हर हाल में भारत में लाने की कोशिश में सरकार जुट गई है. इस काम में आगे आने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों को तैयार कर रही है. मुख्यमंत्रियों से चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोरोना काल में भारत मैन्यूफैक्चरिंग में चीन का विकल्प बन सकता है. अगर राज्य अपने यहां पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर का इंतजाम कर लें तो चीन में काम कर रही विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए लाया जा सकता है. भारत में पहले से ही पर्याप्त श्रमिक हैं.
ये विदेशी कंपनियां चीन और अमेरिका के बीच चलने वाले ट्रेड वार और अब चीन में कोरोना फैलने के कारण उपजी अनिश्चितता की वजह से चीन से बाहर निकलना चाहती हैं. वैसे इन कंपनियों को लाने के लिए सरकार को अपनी औद्योगिक नीति में बड़े बदलाव की जरूरत है. जीएसटी की पेचीदगी को भी दूर करने की जरूरत होगी. सस्ते दरों पर बिजली मुहैया कराने की जरूरत होगी. भारत में यहां के राजनीतिक लड़ाईयों के कारण भी बाहरी कंपनियां नहीं आना चाहती हैं. देश में अतिवाद के माहौल से भी कंपनियां घबराती हैं. इस सबको पार पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी.
अर्थशास्त्री रघुराम राजन का मानना है कि हमारे पास लोगों के जीवन को बेहतर करने का तरीका है. फूड, हेल्थ एजुकेशन पर कई राज्यों ने अच्छा काम किया है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती लोअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के लिए है जिनके पास अच्छे जॉब नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि हमारे पास सभी वर्गों की मदद की क्षमता नहीं है. हम तुलनात्मक तौर पर गरीब देश हैं, लोगों के पास ज्यादा बचत नहीं है.
हमने अमेरिका में बहुत सारे उपाय देखे और जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए यूरोप ने भी ऐसे कदम उठाए. भारत सरकार के सामने एकदम अलग हकीकत है जिसका वह सामना कर रही है. आज वक्त की जरूरत है कि लोगों को सिर्फ सरकारी नौकरी पर निर्भर ना रखा जाए, उनके लिए नए अवसर पैदा किए जाएं. साथ ही नौकरशाह आधारित संरचना के बजाए पंचायती राज को मजबूत करना चाहिए.