कौसानी: शैलराज का मस्तकाभिषेक करतीं हैं स्वर्ण रश्मियां
कौसानी खूबसूरत है। बेहद खूबसूरत। यहां पग-पग पर प्राकृतिक सुंदरता दर्शनीय है। कौसानी की नई पहचान 93 वर्ष पहले महात्मा गांधी की यात्रा और 1900 में जन्मे प्रकृति के चतेरे कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली के रूप में है। आजकल गूगल बाबा भी कौसानी का यही इतिहास बताते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि कौसानी का नाम कैसे पड़ा? चलिए आपको हम बताते हैं। यह क्षेत्र कभी महर्षि कौशिक की तपोस्थली थी। कौशिक ऋषि का नाम अपभ्रंश रूप में ही कौसानी हो गया। कौसानी से महज 7-8 किलोमीटर दूर एक स्थान है रुदधारी फाल्स (झरना)। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपना रूद्र अवतार यहीं लिया था। यहीं एक झील है। झील से निकली धारा आगे चलकर ही कोसी नदी कहलाई। कोसी के रामनगर के पास खेतों में विलीन होने की शापित कथा भी पुरानी है। कहा जाता है कि कोसी नदी का नाम भी कौशिक ऋषि के नाम पर ही पड़ा। रुद्रधारी फाल्स तक आज भी सड़क नहीं है। करीब दो किमी ट्रैकिंग करके ही इस फाल्स तक पहुंचा जा सकता है।
कथाओं से दूर कौसानी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ज्यादा जाना जाता है। कौसानी के हर मोड़, हर गली, हर घर और हर होटल से शैलराज के विहंगम दृश्य ही दृश्य दिखाई देते हैं। शैलराज हिमालय का नंदा घुंटी, त्रिशूल पर्वत, नंदा देवी, नंदाकोट, पंचचूली चोटियों के सुबह और शाम सूरज उगने-डूबने के समय के नजारे अकल्पनीय-अतुलनीय-अवर्णनीय हैं। भुवन भास्कर अपनी स्वर्ण रश्मियों से धरा पर सबसे पहले नगपति विशाल का मस्तकाभिषेक करती प्रतीत होती हैं। स्वर्णिम आभा से दमकते शैलराज को निहारते समय आंखें भी जिद कर मानो बोल उठती हैं- ‘रुक जाना नहीं’। धुंध का अवलंब लेकर शैलराज के माध्यम से धरा पर धीरे-धीरे उतरती सूर्य की किरणें रंगों की एक ऐसी मनमोहक छटा बिखेरती हैं, जिससे इंद्रधनुषी रंग भी लजाते हैं। कौसानी के किसी भी व्यूप्वाइंट पर आप खड़े हो जाएं, पर्वतराज बस एक हाथ दूर ही महसूस होंगे। बरबस ही आपका दिल कह उठेगा- आ छू लें जरा..! प्रात: स्वर्णिम आभा से युक्त शैलराज तेज होती धूप में दिनभर के लिए चांदी की चादर ओढ़े रहते हैं। नवंबर के साफ मौसम में हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां कभी इस सड़क से, कभी उस सड़क से। यहां से, वहां से। चीड़ और देवदारु के झुरमुटों से बरबस ही आकर्षित करती रहती हैं। कभी दूर। कभी पास। अविचल और शांत शैलराज पर्यटकों की आस टूटने नहीं देते।
अनासक्ति आश्रम
1929 में महात्मा गांधी कौसानी के भ्रमण पर आए थे। चाय बागान के मालिक के जिस गेस्ट हाउस में महात्मा गांधी को दिन रुकना था, पर्वतराज हिमालय के विहंगम नजारे और प्राकृतिक सुंदरता ने उन्हें इस कदर मोहा कि वह अपने सारे कार्यक्रम भूलकर 14 दिन यहीं रुके रहे। अनासक्ति योग पर लिखी उनकी पुस्तक की वास्तविक उत्पत्ति यहीं हुई। कालांतर में सरकार ने इस स्थान को अधिग्रहीत कर महात्मा गांधी की यादों को सहेजने के लिए अनासक्ति आश्रम स्थापित कर दिया। बापू के जीवन वृत्त को समझने में यह अनासक्ति आश्रम काफी मूल्यवान है। आश्रम में शांति की एक अलग ही अनुभूति होती है। आश्रम में सुबह-शाम प्रार्थना का नियम आश्रम प्रभारी की अनुपस्थिति में खंडित रहता है। यह व्यवस्था की बड़ी चूक है। संचालक संस्था को इस अव्यवस्था को दूर करने के उपायों पर विचार करना चाहिए, क्योंकि नियम नियम है। महात्मा गांधी का जीवन वृत्त प्रदर्शित कर देना और मूर्ति लगा देना भर काफी नहीं है। स्थान के एतिहासिक महत्व से पर्यटकों को विस्तार से जानकारी देने की व्यवस्था पंत संग्रहालय सरीखी बनाई ही जानी चाहिए। यहां से हिमाच्छादित हिमालय की चोटियों का विहंगम दृश्य अतुलनीय है। आश्रम में रुकने के लिए कमरे भी हैं पर ‘यथा नाम तथा गुण’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए पर्यटकों के मन में यहां के कम किराया होने के बावजूद इन कमरों के प्रति आसक्ति नहीं उपजती। हो सकता है कि सीजन में ऐसा न होता हो। कौसानी में महात्मा गांधी की शिष्य सरला बहन का आश्रम और अनाथ आश्रम भी है। समयाभाव में यह दोनों महत्वपूर्ण स्थानों के दर्शन न कर पाना अपना दुर्भाग्य ही माना जाना चाहिए।
सुमित्रानंदन पंत संग्रहालय
कौसानी के चौक से ऊपर सागर होटल की ओर जाती सीढ़ियों के बीच स्थित एक घर में प्रकृति के चितेरे कवि के रूप में प्रसिद्ध सुमित्रानंदन पंत 20 मई 1900 को जन्में थे। कौसानी आने के बाद आप खुद -ब-खुद समझ जाएंगे कि पंत जी इतने प्राकृतिक क्यों है? जीबी पंत संग्रहालय अल्मोड़ा की देखरेख में संचालित इस संग्रहालय में पंत जी का चश्मा, सदरी कुर्सी, मेज, अलमारी आदि उपलब्ध सामग्री सहेज कर रखी गई है। महान विभूतियों के साथ पंत जी की तस्वीरें आने वाले हिंदी प्रेमियों को जानकारी का अपार खजाना स्वत: प्रदान कर देती हैं। संग्रहालय में संरक्षित साहित्य की किताबें पंत जी की यादें ताजा करती हैं। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादक रहते पंत जी की सरस्वती में कोई कविता प्रकाशित नहीं हुई। आचार्य द्विवेदी और सुमित्रानंदन पंत के जीवन में कई साम्यताएं हैं। दोनों ही महापुरुषों का जन्म मई माह में और मोक्ष दिसंबर माह में ही है। 9 मई 1864 में आचार्य द्विवेदी का जन्म हुआ। 20 मई 1900 को सुमित्रानंदन पंत का। जन्मतथि में 11 दिन का अंतर। 21 दिसंबर 1938 को आचार्य द्विवेदी ने आखिरी सांस ली और 28 दिसंबर 1977 को सुमित्रानंदन पंत ने। आचार्य द्विवेदी जीवन 74 वर्षों का है और पंत जी का 77 वर्षों का। आचार्य द्विवेदी से पंत जी के जीवन की यह समानताएं ही हमें कौसानी में पंत संग्रहालय तक ले गईं।
चाय बागान और चाय की प्रोसेसिंग
कौसानी के चाय बागान देखने का अपना अलग ही आनंद है। इस आफ सीजन में भी सीढ़ीनुमा खेतों में चाय के हरे-भरे पेड़ आपको आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं। यह चाय के बागान ही हैं जिनने महात्मा गांधी को कौसानी से जोड़ा। सुमित्रानंदन पंत जैसे रत्न साहित्य को सौंपे। पंत जी के पिता चाय बागान के व्यवस्थापक थे। यहीं पास के दौरान ही पंत जी जैसे सुकुमार कवि कौसानी में प्रकट हुए। कौसानी आए और चाय बागान नहीं देखे तो समझो कुछ नहीं देखा। हमें प्रसिद्ध चाय बागान के नीचे टी बोर्ड द्वारा संचालित की प्रोसेसिंग प्लांट देखने-समझने का मौका भी स्थानीय सारथी अशोक कुमार की बदौलत मिल गया। यहां आकर ही पता चला कि चाय बागान की शोभा बढ़ाने वाली चाय के पेड़ की बड़ी-बड़ी पत्तियां किसी काम की नहीं वैसे ही जैसे समाज के कथित बड़े लोग? चाय के पेड़ की फुनगी वाली छोटी और ताजी पत्तियों का बलिदान ही आपको तरोताजा रखता है और स्वाद भी देता है। प्लांट में पत्ती आने से लेकर चाय की ग्रेडिंग (बड़ी-मध्यम और छोटी) करने की प्रक्रिया भी देखी और समझी।
संतरे-माल्टा के बाग देख हों जाएं बाग-बाग
कौसानी के मुख्य रास्ते छोड़कर गांव को जाने वाले मार्ग पर थोड़ा बढ़ें तो संतरा माल्टा नाशपाती जामेर के फलों से लदे बाग देखकर आप बाग बाग हो जाएंगे। मैदान से आने वाले पर्यटकों के लिए यह बाग अचंभा होते हैं। दुकानों पर फलों की टोकरियां देखना एक बात और फलों से लदे पेड़ देखना दूसरी बात। बहुत कम पर्यटकों को फलों की ऐसी बाग देखने को नसीब होती है। ऐसे नसीब वालों में हम भी एक रहे।
दमदार ग्वालदम
कौसानी से मात्र 30 किलोमीटर दूर ग्वालदम एक गांव है लेकिन गांव की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कौसानी से एक हाथ दूर लगने वाली हिमालय की चोटियों की दूरी इस गांव के व्यूप्वाइंट से आधा हाथ ही महसूस होने लगती है। कौसानी आए और ग्वालदम की सैर नहीं की तो समझो बहुत कुछ छूट गया। चीड़ और देवदार के घने जंगलों से गुजरते पहाड़ी रास्तों पर चलना एक नया अनुभव से गुजरता है।
कथा समापन होता हय, सुनहु ध्यान लगाय
एकु बार जो आइगा, फिर-फिर घूमै आय
-गौरव अवस्थी, रायबरेली, 9415034340