November 21, 2024

विज्ञानमय धर्म ही सत्य, बाक़ी सब मिथ्या – आचार्य श्री होरी

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धर्म में वैज्ञानिक दृष्टि का क्या आशय है इस लेख में इसे समझेंगे। सबसे पहले हमें विज्ञान को समझना होगा । विज्ञान भी मनुष्य के मस्तिष्क का एक अंश है । किसी में अधिक विकसित है तो किसी में कम । धर्म दर्शन अध्यात्म भी मनुष्य के मस्तिष्क में विद्यमान हैं । यहां विज्ञान का विस्तार क्या ? क्यों? और कैसे ? से होता है और साक्ष्य तथा प्रमाण के बिना आगे नहीं बढ़ता । पहले परिकल्पना (Hypothesis) जन्म लेती है फिर उसको प्रयोगों में जांचते हैं और सिद्ध होने पर सिद्धांत बनते हैं जिसमें विज्ञान खड़ा होता है। विज्ञान केवल कल्पनाओं पर नहीं चलता है । वैज्ञानिक सोच तर्क और प्रमाण को मानती है । यह सोच भी हर मनुष्य के अन्दर है । आपकी विज्ञान सम्मत दृष्टि ही वैज्ञानिक दृष्टि है । बस आप में यह कितनी है ,कम है या अधिक यह विचारणीय है । धर्म में अध्यात्म,दर्शन और कर्मकांड सब है ,जहां अनेकों दर्शनों में तर्क शास्त्र है वहीं अनेक क्षेत्र हैं जहां धर्म केवल परिकल्पना को ही सत्य मानता है । इस तरह जहां दुनिया में विज्ञान केवल एक है वहीं धर्म और दर्शन अलग अलग ।
सभी धर्मों ,दर्शनों में कुछ तत्व हैं जो समान हैं । ऐसे समान तत्व ही वैज्ञानिक दृष्टि में सही ठहरते हैं । जैसे सभी धर्म मानते हैं कि सभी मानव समान हैं । या कहते हैं सत्य बोलना चाहिए । या प्रेम, बंधुता आदर ,सत्कार में सब के विचार एक से हैं । धर्मों के ये तत्व वैज्ञानिक दृष्टि से उचित है। लेकिन अनेक विश्वास और आस्थाएं तथा धार्मिक कर्मकांड ऐसे भी होते हैं जो विज्ञान सम्मत नहीं होते और अगर उनको वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो आप ही उनसे सहमत नहीं होंगे।
अब निर्णय आपको करना है । आपकी वैज्ञानिक दृष्टि ही निर्णय करेगी कि आपको क्या करना है अपनी आस्था पर ।अपने कर्मकांड पर । आपके अंदर विज्ञान भी है और धर्म भी । आप स्वयं ब्रह्म हैं, परमात्मा हैं । आत्मा और परमात्मा एक ही हैं । तभी अहम् ब्रह्मास्मि कहते हैं वेद । बुद्ध इसको ही दूसरे ढंग से कहते हैं —- अत्त दीपो भव ।
आपको इस वैज्ञानिक दृष्टि से ही खुद तय करना है कि जिन कर्मकांडो,रीति रिवाजों को मानते आए हैं उनमें वैज्ञानिकता कितनी है । मूर्ति पूजा ,तीन तलाक आदि मात्र उदाहरण हैं जिनमें आपको तय करना है । आपको तय करना है कि आपकी ऊर्जा किन कामों में लगे और किनमे नहीं ।
वैज्ञानिक दृष्टि ही आपका ज्ञान नेत्र है। इसे जानें और पहचानें और अपने वर्तमान और भविष्य का निर्णय करें ।

आचार्य श्री होरी
बौद्धिक आश्रम, सोहरामऊ, उन्नाव


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