हिन्दू मन का भटकाव, कारण और निवारण
आए दिन प्रश्न आते हैं और आप स्वयं इन प्रश्नों से रोज रोज जूझते हैं कि मन भटकता क्यों है? वैसे तो मन के भटकाव का व्यापक विस्तार है लेकिन यहां मैं हिन्दू के मन के भटकाव की बात तक सीमित रहूंगा। बाकी आगे चर्चा करूंगा।
यह चर्चा भी धर्म, दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र की करूंगा। राजनीति, अर्थ तथा अन्य क्षेत्रों की पृथक से करूंगा ताकि आपस में घालमेल न हो और चर्चा की स्पष्टता रहे, साथ ही लाभदायक और सार्थक भी हो । इस समय विश्व में अधिकतर एकेश्वरवादी धर्म हैं यथा ईसाई, इस्लाम मुख्य हैं जिनके मानने वालों की संख्या और देश अत्यधिक हैं। बौद्ध, जैन अनीश्वरवादी हैं सिक्ख गुरुग्रंथ साहिब को मानता है। हिन्दू जिसे ब्राह्मण या सनातन धर्म भी कहते हैं, मुख्य रूप से ईश्वर वादी है इसमें कुछ संख्या नास्तिकों की भी है।
हिन्दू मुख्यतः ईश्वर, आत्मा,परमात्मा पर आस्था के साथ साथ बहुदेव वाद पर आस्था और विश्वास रखता है। अनेकों देवी, देवताओं पर आस्था के कारण वह एकेश्चरवादी नहीं रहता है, जबकि वेद और उपनिषद एक ब्रह्म की बात करते हैं। वेद और उपनिषद एकेश्वरवादी हैं। उपनिषदों के पश्चात पुराणों में बहुदेववाद प्रचुर रूप में हो गया और नाना रूपों में देव और देवता हो गए जिन्हें वह पूजने लग गया।
वेदों से चल कर एकेश्वरवाद पुराणों तक बहुदेववाद बन गया और हिन्दू बहुदेववादी हो गया। यही नहीं जहां वेद और उपनिषद निराकार सत्ता ही मानते हैं, वहीं पुराण और अन्य भक्ति ग्रंथ साकार उपासना और मूर्ति पूजा अर्चना करने लगे। निराकार मन चक्रत धावे का आरोप निराकार उपासना पर लगा कर बहुसंख्यक समाज साकार पूजा,आराधना और मूर्ति पूजा अर्चना करने लगा।
इस परिवर्तन से वह अपने मूल वेदों से दूर हो गया और अनेक देव देवियों में आस्था रख कर भटकाव को प्राप्त होने लगा। अहम् ब्रहास्मि और सोअहम् के मंत्र और शक्ति देने वाले वेदों से दूर होने पर हिन्दू को अपनी आत्मिक, आध्यात्मिक, धार्मिक शक्तियों में क्षरण का अनुभव हुआ मगर वह वापस वेदों की ओर न लौट कर भांति भांति के देव देवियों के पास और तेजी से जाने लगा। अब उसका किसी एक पर विश्वास न हो कर कभी इस पर कभी उस पर विश्वास होने लगा। वह सब पर आस्था रखने लगा।
यहीं पर एकेश्वर वादी धर्मों में भटकाव नहीं हुआ और वे अपने गॉड या अल्लाह पर ही केन्द्रित रहे। दुनिया में बहुदेववाद हिन्दुओं में सबसे ज्यादा पनपा। वह दुःख या सुख में अपने सारे आराध्यों के पास जाता रहा। अब मनो वैज्ञानिक सत्य है कि जो व्यक्ति एक पर ही विश्वास करता है उसका मन इधर उधर कम ही जाएगा। अपने और एक ईश्वर पर केन्द्रित रहेगा।
यह आत्मविश्वास ही जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है। बौद्धिक मिशन और आश्रम में एक ब्रह्म और निराकार उपासना पर ही मान्यता देते हैं ताकि भटकाव न हो और आपमें ब्रह्म की ऊर्जा रहे। शक्ति रहे।
तमसो मा ज्योतिर्गमय का मंत्र भी आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। आपके अंदर ही प्रकाश है आत्मा और परमात्मा का।
आप सामर्थ्यवान हैं बस भटकाव छोड़ कर अपनी शक्ति और अनंत ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को जानें और पहचानें जो आपके अंदर है। ध्यान करें तो बस उसी का।
तत् त्वम् असि ।
आचार्य श्री होरी
7428411588, 7428411688