एकोअहम् द्वितीयोनास्ति – आचार्य श्री होरी

एकोअहम् द्वितीयोनास्ति – आचार्य श्री होरी

अब आप चिंतन करें। जब मैं और वह एक हैं, यानी आपमें इसमें उसमें वही विद्यमान है तो उसे बाहर क्यों खोजते हैं?  मूर्तियों, देवी देवताओं, चित्रों में खोजने से अच्छा है भटकाव बंद कर अप्प दीपो भव कहें  या तत् त्वम् असि कहें या सोअहम् कहें या कहें अहम् ब्रह्मास्मि। बात समानार्थी है।

बुद्ध ने,  वेदों, उपनिषदों ने यही ज्ञान सदियों से दिया है तब मानव क्यों इधर उधर भटके?  वह क्यों विचलित हो?  इसी भटकाव को समाप्त करने ऋषि दयानंद सरस्वती भी आए थे। 

कोरोना महाप्रकोप ने विश्व को समझा दिया है कि तुम्हारे पूजा स्थल प्रकृति और ब्रह्म को स्वीकार नहीं। वे मानव धर्म को मानते हैं उनके लिए सबका खून, प्लाज़्मा एक है। वायरस भी एक सबके लिए। विष भी एक है वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई के लिए पृथक नहीं है ।

आप अपनी ऊर्जा को, शक्ति को जाने और पहचाने तो सही। जाने तो — आप ब्रह्म हैं। आप शरीर मात्र नहीं हैं। इसलिए अपने मन और इन्द्रियों से हट कर ध्यान करें और ध्यान के आरंभ में अहम् ब्रह्मास्मि का उच्चारण करें। फिर पूर्ण ध्यान में डूब जायें।

यहां वहां भटकने वाले लोग तब तक भटकते हैं जब तक अपने अंदर प्रवेश नहीं करते। प्रत्येक दिन सायं घर में एक दीप जलाएं जो ज्ञान का प्रकाश देगा। उसकी अग्नि शिखा में ध्यान आरंभ करें और कुछ क्षण बाद उसकी लौ आपको आंख बंद करने पर भी दिखेगी। उस मस्तिष्क स्थित अग्नि शिखा में जो बंद नेत्रों से भी दिखेगी रोज ध्यान लगाते रहें। आपको प्रकाश दिखेगा। आप ब्रह्ममय हो जाएंगे ।     

अहम् ब्रह्मास्मि

– आचार्य श्री होरी, बौद्धिक आश्रम, सोहरामऊ, उन्नाव

Twitter.com/acharya shri Rajkumar Sachan Hori

email- bauddhikashram@gmail.com

Posts Carousel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

Latest Posts

Top Authors

Most Commented

Featured Videos