कोरोना बोला होरी क्या है हाल ? मैं बोला यह कैसा सवाल ? मचा रखा दुनिया में इतना बवाल ? फिर पूछते हो कैसा है हाल ?
अरे "होरी" ,गुस्सा नहीं करते । कवि हो इतना नहीं समझते । अतिथि हूं गोबर ही खिला देते गोमूत्र ही पिला देते
और वे दुनियां भर की मिसाइलें क्यों नहीं चलाते ? मुझ पर परमाणु बम, हाइड्रोजन बम क्यों नहीं गिराते ?
तुम दुनियां को हज़ार बार नष्ट कर सकते हो पर मुझ नाचीज़ से इतना डरते हो । तुम्हारे सर्व शक्तिमान ईश्वर,अल्ला, गॉड डर गए। कुछ तो मैंने मारे पर ज्यादा तो भय से मर गए ।।
"होरी", मैं धार्मिक स्थलों,भगवानों से नहीं डरता किसी मंत्र तंत्र, आयत, ताबीज़ , टोने से नहीं मरता।। रूप बदल बदल कर दुनियां में आता रहा हूं। बार बार दुनियां को समझाता रहा हूं ।।
पर तू न माना , प्रकृति को करता रहा नष्ट । अरे ओ पथ भ्रष्ट देख मेरे आने पर प्रकृति कितनी प्रसन्न है। एक आदमी ही खिन्न है ।।
तुम प्रकृति के साथ ,उसकी तरह रहना सीख लो, मैं चला जाऊंगा ,फिर न आऊंगा । कहता हूं फिर मुझे नहीं आना । अगर तुम्हें प्रकृति धर्म निभाते पाऊंगा ।।