कहानी – मन्नत की डायरी
विद्या अब बेचैन हो उठी थी। अब और इंतज़ार नहीं हो पा रहा था। शाम के 6 बज रहे थे। मन ही मन वो बुदबुदाने लगी “ पूरा का पूरासिस्टम सड़ चुका है, पता नहीं कब सुधरेगा ये, सुबह से शाम होने को है लेकिन……..” वो बड़बड़ाए जा रही थी तभी अचानक कॉलबेलबजी। लगभग दौड़ते हुए उसने दरवाज़ा खोला। माँ….उसके कानों में जैसे मिश्री घुल गई हो। वह ऑखों का सैलाब रोक नहीं सकी….। मन्नत को उसने अपने आँचल में ऐसे समेटा मानो कई साल बाद मिली हो।
मन्नत में उसकी जान बसती है। उसके बिना वो एक पल भी नहीं रह सकती। 20 दिन बाद मन्नत अस्पताल से घर लौटी थी। वह कोरोनावायरस से जंग जीतकर आई थी। काफी कमजोर हो चुकी थी। लेकिन चेहरे पर एक विजेता के भाव साफ देखे जा सकते थे। विद्या कीनजरें उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थीं। वो लगातर उसे निहारे जा रही थी।
विद्या…विद्या…विद्या…। अबकी बार थोड़ी ऊंची आवाज में विवेक ने पुकारा।
हाँ….एकदम से सकपकाकर विद्या बोली।
पत्नी विद्या को थोड़ा छेड़ते हुए विवेक बोला, अरे भाई बेटी को कुछ खिलाओगी-पिलाओगी या बस यूं ही एकटक ताकती रहोगी। विद्याथोड़ा झेंप गई।
विद्या ने मन्नत के पसंदीदा गोलगप्पे बनाए थे। और साथ में खट्मिट्ठा जलजीरा पानी भी। मन्नत ने माँ से फ़ोन पर बात करते हुए यहीख़ास फ़रमाइश की थी।
गोलगप्पे देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। जबसे लॉकडाउन लगा था मन्नत ने गोलगप्पों की शक्ल तक नहीं देखी थी। उसके चेहरेकी खुशी देखने ही लायक थी। वो खिलाखिला रही थी। विवेक बेटी को एकटक निहारते हुए स्मृतियों में खो गया।
वो 25 अप्रैल का दिन था। दोपहर के ठीक 2 बजे थे। लंच खत्म करके सीधे वो चैनल हेड विनोद श्रीवास्तव के केबिन में दाखिल हुआ हीथा कि उसके हाथ में एक सादा काग़ज़ थमाते हुए श्रीवास्तव जी ने तल्ख़ लहजे में आदेश दिया। इस पेपर पर अपना इस्तीफ़ा लिखो।
सर ये क्या….विवेक का गला रुँध गया था।
बैठो। श्रीवास्तव जी ने कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा। मैं तुम्हें कई बार पहले भी समझा चुका हूँ। हम ऐसी स्टोरी नहीं दिखासकते। तुम समझते क्यों नहीं। चैनल बंद हो जाएगा। जेल जाओगे सो अलग। तुम बार-बार संकट में डाल देते हो। तुम्हे समझ ही नहीं आता….।
अरे भाई अब पत्रकारिता का जमाना लद चुका है। अब सिर्फ पत्तलकार चाहिए। सरकार का स्तुतिगान करो और सुखी रहो। चड्ढा साहेबकह रहे थे ऊपर से बहुत प्रेशर है। सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं जाना चाहिए। सख़्त आदेश हैं उनके। तुम्हारी स्टोरी किसी ने लीककर दी है और बात मंत्रालय तक पहुंच गई है। उसने चड्ढा साहेब की पैंट गीली कर दी है। धमकी दे रहा था…बास्ट….। श्रीवास्तव जी नेकिसी तरह से अपने आपको रोका। उसने चेतावनी दी है कि यदि तुम्हे चैनल से नहीं निकाला गया तो फिर नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहिए।
विवेक कुछ बोलना चाह रहा था लेकिन फिर उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। काग़ज़ पर इस्तीफ़ा लिखकर श्रीवास्तव जी को थमादिया और चुपचाप केबिन से बाहर निकल गया। डेस्क से अपना सामान समेटा, पार्किंग से कार निकाली और दफ़्तर से घर के लिएनिकल पड़ा। पूरे रास्ते सोच रहा था कि कैसे घर चलेगा, कार और फ्लैट की ईएमआई कैसे भरेगा। बेटी की पढ़ाई के लिए पैसा कहां सेआएगा। लॉकडाउन की वजह से विद्या की ट्यूशन क्लासेज भी बंद हैं। कैसे मैनेज होगा ये सब। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।फुल एसी में भी उसका दम घुट रहा था।
कार पार्किंग में लगाई और लिफ्ट से 10 वीं मंजिल पर स्थित अपने घर पहुँचा। कॉलबेल बजते ही मन्नत ने दरवाज़ा खोला औरचहककर बोली, पापा… देखो मैंने आपके लिए क्या बनाया है। वो पापा को खींचकर सीधे किचेन में ले गई। ये देखो ….। मन्नत देसी घीमें पकाये हुए रवे के हलवे को दिखाते हुए उसके बारे में पूरी तल्लीनता से बताती जा रही थी, कि कैसे उसने यूट्यूब से देखकर इसे बनायाहै….वो बोले जा रही थी। विवेक बेटी के चेहरे को निहार रहा था। वो बहुत ख़ुश थी। बिल्कुल आज जैसी।
विवेक स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम का हिस्सा था। 20 साल के करिअर में कई बार अपनी जान जोखिम में डालकर स्टिंग कर चुका था।इस चैनल के लिए भी दो बार स्टिंग कर चुका था। तब चैनल ने ख़ूब टीआरपी बटोरी थी। चैनल के मालिक चड्ढा जी ने ख़ुद अपने हाथों सेविवेक को ‘बेस्ट रिपोर्टर’ का अवार्ड दिया था।
25 मार्च 2020 को जब देश में कोरोना महामारी से निपटने के लिए 21 दिन का पहला लॉकडाउन लगाया गया तो उसके एक हफ़्ते बादही विवेक को एक लीड मिली थी। बहुत ही पुख़्ता लीड थी, जिस पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं था। चैनल हेड श्रीवास्तव जी सेइजाज़त लेकर विवेक खोजबीन में लग गया। इसबीच 14 अप्रैल को खत्म हो रहे लॉकडाउन को सरकार ने 19 दिन के लिए और बढ़ादिया। इधर दिन रात एक करके 21 अप्रैल तक विवेक ने अपनी रिपोर्ट पूरी कर ली थी। 22 तारीख़ को विवेक ने सारा फ़ुटेज श्रीवास्तवजी को दिखाया।
श्रीवास्तव जी फ़ुटेज देखकर हतप्रभ रह गए।… वेल डन विवेक। तुमने तो कमाल कर दिया।
ये कैसे कर लेते हैं इतना नीच काम। कितना गिरेंगे ये लोग। लोग मर रहे हैं और ये पैसे छाप रहे हैं। इन्हें भगवान भी माफ़ नहीं करेगा।ओह…हद है यार…फ़ुटेज देखते हुए श्रीवास्तव जी बोले।
विवेक ने जिस घोटाले का स्टिंग किया था उसमें कई ताकतवर लोग शामिल थे। मंत्रालय तक उनकी सीधी पहुंच थी। उनसे पंगा लेनासबके बस की बात नहीं थी। लेकिन विवेक ने ये कर दिखाया था।
टेप यहीं छोड़ दो विवेक। मैं चड्ढा जी बात करके बताता हूं कि आगे क्या करना है। श्रीवास्तव जी ने विवेक की पीठ थपथपाते हुए कहाऔर अपने चैम्बर से बाहर चले गए। विवेक ने स्टिंग के टेप वहीं टेबल पर रख दिए और चाय पीने के लिए कैफ़ेटेरिया की तरफ बढ़ गयाथा।
पापा…. कहां खो गए…। आप भी लो ना गोलगप्पे। मम्मी ने कितना टेस्टी बनाए हैं।
हां…विवेक के मुँह से एकाएक निकला। बेटी की चहकती आवाज़ कान में पड़ते ही विवेक स्मृतियों से बाहर आ गया।
दरअसल विवेक की नौकरी गए अभी हफ़्ता भी नहीं बीता था कि पूरा परिवार कोरोना पॉज़िटिव हो गया। एक साथ दोहरी मार पड़ी थीविवेक पर। और दोनों बातों के लिए वो अपने आपको ही दोषी मान रहा था। वो भलीभांति जानता था कि उसके अलावा लॉकडाउन मेंघर से बाहर कोई नहीं गया था। रिपोर्टिंग के दौरान कहीं किसी वक्त वो कोरोना संक्रमित हो गया होगा। उसी से परिवार के सभी सदस्य संक्रमित हुए थे ये साफ़ था। विवेक और विद्या को कोरोना का हल्का संक्रमण था लेकिन बेदी मन्नत को संक्रमण काफी ज़्यादा था। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जबकि विवेक और विद्या को होम क्वारंटीन में रखा गया।
मन्नत 20 दिन अस्पताल में इलाज कराकर आज ही वापस आई थी। आज 18 मई है और आज एक बार फिर सरकार ने 14 दिन केलिए लॉकडाउन बढ़ा दिया है।
गोलगप्पे खाते हुए मन्नत अस्पताल का सारा ब्योरा इतनी तेज़ी से बता रही थी जैसे कि कोई ट्रेन छूट रही हो। हर एक छोटी बड़ी बात वोबताए जा रही थी। वैसे तो ये सारी बातें वो फोन पर कई बार बता चुकी थी। लेकिन आज की बात ही कुछ और थी। मम्मी-पापा केसामने बैठकर वो जल्दी-जल्दी सब बता देना चाह रही थी। उसने झट से अपने बैग से एक डायरी निकाली और पढ़ने लगी।
मन्नत जब 13 साल की थी तभी से वो रोज़ डायरी लिखती आ रही है। अस्पताल में भी उसने सिस्टर से एक डायरी और पेन का किसीतरह जुगाड़ कर लिया था। दरअसल अस्पताल जाते वक़्त वो अपनी पुरानी डायरी घर पर ही भूल गई थी।
वैसे तो वो अपनी डायरी किसी को पढ़ने नहीं देती थी, लेकिन आज वो ख़ुद ही मम्मी-पापा को अपनी डायरी पढ़ के सुना रही थी।अस्पताल की छोटी –बड़ी हर बात उसने बड़ी बारीकी से ऑब्जर्व की थी। नर्सों, डॉक्टरों और मरीजों को हो रही हर परेशानी, अस्पतालकी बदहाली का मानो कच्चा चिट्ढा सुना रही हो।
विवेक बेटी की बातों को बड़े ही गौर से सुन रहा था। उसे बेटी की संवेदनशीलता और पैनी नज़र पर गर्व महसूस हो रहा था। वो सोच रहाथा कि काश वो रिपोर्ट उस दिन चैनल पर चल जाती तो अस्पतालों का आज ये हाल न होता।
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लेखक – महेन्द्र सिंह । email- mspatelji@gmail.com